गर्मियों की शाम थी ! देवांश के दोस्त इन दिनों घर के अन्दर ही डेरा जमाये रहते थे ! मम्मी लू लगने के डर से बाहर जाने ही नहीं देती थीं ! स्कूल में अध्यापिका थीं तो उन्हें बच्चों को किसी न किसी गतिविधि में व्यस्त रखने का खूब अनुभव था ! आज भी मम्मी ने सब बच्चों को ड्रॉइंग शीट देकर सबसे आगामी पितृ दिवस के उपलक्ष्य में एक ड्रॉइंग बनाने के लिए कहा ! विषय था बच्चे और उनके पापा एक दूसरे के साथ कैसा समय बिताते हैं इसे चित्र के द्वारा बताएं ! क्योंकि यह एक प्रतियोगिता थी इसलिए सब बच्चों को दूर दूर बैठाया गया था कि वे एक दूसरे का चित्र देख कर नक़ल ना करें !
बच्चे उत्साह से चित्र बनाने में जुट गए ! घर में काम करने
वाली लीला का बेटा कन्हैया भी यह सब बहुत ध्यान से देख रहा था ! देवांश के पास
जाकर बोला –
“भैया जी हमको भी एक कागज़
दो ना ! हम भी चित्र बनायेंगे !”
“तुझे आता भी है चित्र
बनाना ?” देवांश ने हँस कर कहा ! लेकिन उसका उत्साह देख कर उसने कन्हैया को भी एक
ड्रॉइंग शीट और रबर पेन्सिल पकड़ा दी !
प्रतियोगिता का समय
समाप्त हो चुका था और सब बच्चे अपनी अपनी ड्रॉइंग देवांश की मम्मी के पास जमा कर
चुके थे ! आज का परिणाम सबको चौंकाने वाला था ! सर्वश्रेष्ठ चित्र का पुरस्कार
कन्हैया को मिला था ! देवांश की मम्मी ने कन्हैया को खूब सारी चॉकलेट्स इनाम में
दीं और उसे गले से लगा कर बहुत प्यार किया !
बच्चों के चित्रों में
विविधता थी ! किसीमें पापा बच्चों के लिए घोड़ा बने हुए उन्हें सवारी करा रहे थे,
किसीमें बच्चों को चॉकलेट और गुब्बारे दे रहे थे, किसी में बच्चे पापा के कंधे पर
सवार थे तो किसीमें बच्चों को पापा किताब से कहानी सुना रहे थे ! कन्हैया के चित्र में उसके पापा हाथ में डंडा
लेकर बच्चे की पिटाई लगा रहे थे और खाट के नीचे दारू की बोतल और एक गिलास लुढ़का
हुआ पड़ा था !
साधना वैद
ओह ! भावुक कर देने वाली लघुकथा
ReplyDeleteयह एक कटु यथार्थ है रंजू जी ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका !
Deleteकटु सत्य को कहती मार्मिक लघु कथा
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteओह! बहुत मर्मांतक अभिव्यक्ति साधना जी।बच्चे का मन बहुत कोमल होता है।प्रतिभा किसी वर्ग विशेष की मोहताज नहीं होती।और कला ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा है जिसे बाहर आना ही चाहिये।एक भावपूर्ण और संदेशपरक रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏♥️♥️🌺🌺🌹🌹
ReplyDeleteआपने पढ़ा सराहा मेरा श्रम सार्थक हुआ रेणु जी ! आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteआपकी लिखी रचना शुकवार 24 जून 2022 को साझा की गई है ,पांच लिंकों का आनंद पर...
ReplyDeleteआप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।संगीता स्वरूप
दिल से बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteशानदार रचना
ReplyDeleteसादर नमन
हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteमार्मिक लघुकथा ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मीना जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसाधना दी बहुत ही मार्मिक लघु कथा है भावुक कर गयी
ReplyDeleteस्वागत है रचना जी ! आप शायद पहली बार मेरे ब्लॉग पर आई हैं ! बहुत बहुत धन्यवाद एवम् आभार !
Deleteमार्मिक लघुकथा।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जयोति जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबालकाल में कोमल मन पर छपी कुछ स्मृतियां आजीवन नहीं भुलायी जाती।
ReplyDeleteसंवेदनशील लघुकथा।
सादर।
हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबाल मनोविज्ञान को दर्शाती मार्मिक कथा।
ReplyDeleteस्वागत है रेखा जी ! बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका !
Deleteबच्चे जो देखते हैं वही बयां करते हैं बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी ! हृदय से आभार आपका ! यह हमारे समाज में एक वर्ग का कटु सत्य है !
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