कितना चाहा
कि अपने सामने अपने इतने पास
तुम्हें पा तुम्हें छूकर तुम्हारे सामीप्य की अनुभूति को जी सकूँ,
लेकिन हर बार ना जाने कौन सी
अदृश्य काँच की दीवारों से टकरा कर मेरे हाथ घायल हो जाते हैं
और मैं तुम्हें छू नहीं पाती ।
कितना चाहा
कि बिन कहे ही मेरे मन की मौन बातों को तुम सुन लो
और मैं तुम्हारी आँखों में उजागर
उनके प्रत्युत्तर को पढ़ लूँ,
लेकिन हर बार मेरी मौन अभ्यर्थना तो दूर
मेरी मुखर चीत्कारें भी समस्त ब्रह्मांड में गूँज
ग्रह नक्षत्रों से टकरा कर लौट आती हैं
लेकिन तुम्हारे सुदृढ़ दुर्ग की दीवारों को नहीं बेध पातीं ।
कितना चाहा
कि कस कर अपनी मुट्ठियों को भींच
खुशी का एक भी पल रेत की तरह सरकने ना दूँ,
लेकिन सारे सुख न जाने कब, कैसे और कहाँ
सरक कर मेरी हथेलियों को रीता कर जाते हैं
और मैं इस उपमान की परिभाषा को बदल नही पाती ।
कितना चाहा
कि मौन मुग्ध उजली वादियों में
सुदूर कहीं किसी छोर से हवा के पंखों पर सवार हो आती
अपने नाम की प्रतिध्वनि की गूँज मैं सुन लूँ
और वहीं पिघल कर धारा बन बह जाऊँ,
लेकिन ऐसा कभी हो नहीं पाता
और मैं अपनी अभिलाषा को कभी कुचल नहीं पाती ।
साधना वैद
dost bahut sundar likha hai...likhte raho...or haan mere blog par aapka swagat hai....
ReplyDeleteJai HO Mangalmay HO
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 01-12 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज .उड़ मेरे संग कल्पनाओं के दायरे में
'बिन कहे तुम मेरी मौन बातों को सुन लो
ReplyDeleteऔर में तुम्हारी आँखों में उजागर
उनके प्रत्युत्तर को सुन लूं '
बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ |
बधाई |
आशा
ये तो अद्भुत कविता है दीदी अद्भुत। भला हो संगीता दीदी का जो दोस्तों के खज़ानों में सेंधमारी कर के छुपे हुये हीरे मोतियों से रू-ब-रू करवा रही हैं।
ReplyDeleteकितना चाहा
ReplyDeleteकि मौन मुग्ध उजली वादियों में
सुदूर कहीं किसी छोर से हवा के पंखों पर सवार हो आती
अपने नाम की प्रतिध्वनि की गूँज मैं सुन लूँ
बेहतरीन पंक्तियाँ हैं।
सादर
बहुत सुंदर,
ReplyDeleteक्या कहने
आह ..साधना जी यही तो बिडम्बना है ..कहाँ जो चाहो वह हो पाता है.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना.
कहाँ रुकते हैं मुट्ठी में... वक्त हो या रेत...
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
सादर..
jo chaahne se na mile use jabardasti haansil karne ki ek baar zidd to karni hi chaahiye....khushiyon ko kabhi kabhi chheenNa hi padta hai.
ReplyDeleteअदभुत अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteस्नेहमयी साधना जी - इत्तेफाक से हम आपकी यह अनूठी शब्द रचना आज पढ़ पाए ! सुंदर भावनाएं सरस शैली बधाई धन्यवाद- भोला कृष्णा
ReplyDelete