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Sunday, October 30, 2011

एक और तमाशा

राष्ट्र मण्डल खेलों के घोटालों का दर्द अभी हल्का भी नहीं हुआ था कि लीजिए जनता की पीठ पर फॉर्मूला वन कार रेस का बोझ और लाद दिया गया ! हमारे नेताओं की दूरदर्शिता का भी कोई जवाब नहीं है ! कितनी भी फजीहत हो, अपमान हो, जगहँसाई हो और शर्मिंदगी उठानी पड़े इनकी सेहत और मंसूबों पर कोई असर नहीं पडता ! और पड़े भी क्यों ? ऐसे ज़रा ज़रा सी बातों को दिल पर लगा कर बैठ जायेंगे तो बैंक बैलेंस कैसे बढ़ेगा ! ऐसे ही अवसरों पर तो अपने और अपने सारे निकट सम्बन्धियों के कष्टों के निवारण का दुर्लभ अवसर हाथ लगता है ! वैसे एक फ़ायदा होने की तो उम्मीद हुई है कि इस कार रेस के खत्म हो जाने के बाद चंद और ‘कलमाडियों’ के चहरे बेनकाब होंगे तथा कई और जांच आयोग सारे मामले की चीर फाड़ के लिये नियुक्त किये जायेंगे ! यह और बात है कि इनका खर्च भी बेचारा गरीब आम आदमी उठाएगा !

बहुत दुःख होता है कि हमारे देश में जहाँ आम आदमी को बुनियादी सुविधाएँ तक नसीब नहीं हो पाती हैं वहाँ हमारे नेता इतने मँहगे आयोजनों पर अरबों रुपया पानी की तरह बहा रहे हैं ! गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा, बीमारी और मंहगाई से जूझने के लिये ही जब हम सक्षम नहीं हैं तो इतने मंहगे खोलों के आयोजनों को भारत में कराने का औचित्य क्या है ? इनकी तैयारियों के ऊपर जो अरबों रुपया खर्च किया गया है क्या उसका अतिरिक्त भार आम आदमी की जेबों पर नहीं पडता है ? ऐसे खेलों के आयोजनों से पूर्व जनमत संग्रह किया जाना चाहिये और जनता के सामने पूरी पारदर्शिता के साथ सरकार को स्पष्ट रूप से अपना प्रस्ताव रखना चाहिये कि इन खेलों की तैयारियों में कितना खर्च आएगा और जनता पर इसका कितना भार पडेगा ! यह तो कोई बात ही नहीं हुई कि चंद दौलतमंद लोगों के शौक और शगल को पूरा करने के लिये मंहगाई की चक्की में पहले से ही पिसते कराहते लोगों पर और कर भार थोप दिया जाये और उनके संकट को और कई गुणा बढ़ा दिया जाये ! मंहगाई के प्रतिदिन बढ़ते हुए आँकड़े क्या इसीका संकेत नहीं हैं ? यदि आम आदमी की राय ली जायेगी तो मुझे पूरा विश्वास है कि भारत की लगभग अस्सी से पचासी प्रतिशत जनता इसके विपक्ष में ही वोट देगी ! तो फिर किस अधिकार से सरकार अपनी दोषपूर्ण नीतियों और निर्णयों को जनता पर थोप देती है ! जो पन्द्रह बीस प्रतिशत लोग इसके पक्ष में वोट देंगे उनके पास अकूत धन है इसलिए खर्च के लिये धन भी उन्हीं से उगाहा जाना चाहिये ! हर भारतवासी से नहीं ! कर के रूप में उनसे वसूले गये पैसों से उनके लिये अच्छी सड़कें बन जायें, स्कूलों में अच्छी शिक्षा और समर्पित शिक्षकों की व्यवस्था हो जाये, गाँवों और छोटे शहरों में जहाँ भारत की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा निवास करता है वहाँ शौचालय, कूड़ाघर और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की व्यवस्था हो जाये और हर मुख को दो वक्त की भरपेट रोटी नसीब हो जाये यही बहुत है !

कॉमन वेल्थ गेम्स के आयोजन के समय भी तैयारियों को लेकर बड़ी टीका टिप्पणी हुई थी ! जहाँ खिलाड़ियों को ठहराना था वहाँ कुत्तों ने अपना डेरा डाल रखा था ! आज भी सारे सुरक्षा घेरों को पार कर दो कुत्ते ट्रैक पर आ गये थे ! ये कुत्ते योजनाबद्ध तरीके से षड्यंत्र करके सुरक्षा कर्मियों की आँख में धूल झोंक कर वहाँ नहीं घुसे होंगे यह तो निश्चित है ! लेकिन उनकी ट्रैक पर मौजूदगी हमारी चाक चौबस्त व्यवस्थाओं की कलई खोलने के लिये यथेष्ट है ! रेस के प्रमोशन के लिये आयोजित मेटेलिका कंसर्ट के रद्द होने ने रही सही नाक भी कटवा दी जब पब्लिक के गुस्से और शिकायतों का कहर स्टेज और उसके आयोजकों पर टूटा ! हज़ारों रुपये खर्च कर जो शौक़ीन लोग कार्यक्रम देखने आये थे उन्हें कार्यक्रम के रद्द हो जाने से गहरी निराशा हुई ! कार्यक्रम किन तकनीकी असफलताओं के कारण रद्द हुआ यह तथ्य भी हमारी योग्यताओं एवं कार्यक्षमताओं पर अनेक प्रश्चिन्ह लगा जाता है ! बस मुँह का ज़ायका बिगाडने वाला समाचार यह था कि गुस्साई भीड़ ने खूब उपद्रव किया आयोजकों के खिलाफ रिपोर्ट की और परिणामस्वरूप आयोजकों को गिरफ्तार कर लिया गया ! मुझे समझ में नहीं आता हम कब अपनी ताकत का सही आकलन कर पायेंगे ? जब वर्ल्ड क्लास इवेंट की मेजबानी करने की हमारे पास ना तो योग्यता है ना क्षमता और ना ही संसाधन हैं तो क्यों हम हर फटे में अपनी टाँग उलझा कर बैठ जाते हैं कि सारे विश्व के सामने हमारी मजाक बनाई जाती है और आयोजनों के उपरान्त हम हमेशा बैक फुट पर हो सफाई देते हुए ही नज़र आते हैं !

हवाओं में ऊँची उड़ान भरने से पहले अपने पंखों की कूवत का अंदाजा लगा लेना चाहिये ! बेहतर होगा कि हम एक-एक सीढ़ी चढ़ कर शिखर पर पहुँचें ना कि कई सीढ़ियाँ फलांगते हुए चढें ! जो ऐसा करते हैं उनके मुँह के बल गिरने की संभावनाएं अधिक होती हैं ! काश हमारे नीति निर्णायक नेता यह बात समझ पायें !

साधना वैद

16 comments :

  1. गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा, बीमारी और मंहगाई से जूझने के लिये ही जब हम सक्षम नहीं हैं तो इतने मंहगे खोलों के आयोजनों को भारत में कराने का औचित्य क्या है ?
    प्रश्‍न वाजिब हैं आपके ..

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  2. विश्व स्तरीय आयोजन केआने में कोई हानि नहीं लेकिन बात यह है कि " हवाओं में ऊँची उड़ान भरने से पहले अपने पंखों की कूवत का अंदाजा लगा लेना चाहिये ! बेहतर होगा कि हम एक-एक सीढ़ी चढ़ कर शिखर पर पहुँचें ना कि कई सीढ़ियाँ फलांगते हुए चढें ! "

    मेटेलिका कंसर्ट रद्द होने के कारण भद्द तो पिट ही चुकी है ..पहले अपनी क्षमता को आंकना चाहिए वरना विश्व स्तर पर ही आलोचना भी झेलनी पड़ती है ..

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  3. हमारे नेताओं की दूरदर्शिता का भी कोई जवाब नहीं है ! कितनी भी फजीहत हो, अपमान हो, जगहँसाई हो और शर्मिंदगी उठानी पड़े इनकी सेहत और मंसूबों पर कोई असर नहीं पडता ! और पड़े भी क्यों ? ऐसे ज़रा ज़रा सी बातों को दिल पर लगा कर बैठ जायेंगे तो बैंक बैलेंस कैसे बढ़ेगा !

    हमारे शोर पुकार का किसी भी पार्टी के नेताओं पर कोई असर ही नहीं होता।
    ये लोग ईश्वर अल्लाह और दीन धर्म के नाम का इस्तेमाल करके लोगों का भरोसा ईश्वर और धर्म से उठाने में भी लगे हुए हैं।
    आज भारतीय जनता में कोई नैतिक शक्ति विशेष स्तर पर नहीं पाई जाती।
    हालात अंदाज़े से ज़्यादा कठिन हैं।

    एक अच्छी पोस्ट !!!

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. अच्छा मुद्दा उठाया है |अच्छा लेख |
    आशा

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  6. काश हमारे नीति निर्णायक नेता यह बात समझ पायें !

    सटीक बात!

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  7. सार्थक चर्चा....
    सादर...

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  8. सचमुच बहुत शर्मसार हुए हैं भारतवासी..चंद लोगो की अदूरदर्शिता..और स्वार्थपरता की वजह से.
    सब कुछ सलीके से किया जाए तो मुश्किल नहीं आनी चाहिए...पर जहाँ किसी भी तरह अपनी जेबे गर्म करना ही धर्म हो तो कैसे सुधार आ सकता है.
    और इन आयोजनों का औचित्य क्या है..पहले तो इस पर ध्यान देना जरूरी है.

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  9. vikas ke daur me dusre se hod karne se pahle apne girebaan ko jhaank lena chaahiye aur apni vyavastha ko bhi dhyan me rakh lena chaahiye...varna aisi hi muh ki khani padegi....lekin hamari sarkar in sab ki bhi aadi ho chuki hai....dukh hai.

    na jane aisi fainsle lene se pahle aam janta ki raay kyu nahi le li jati. shayad aise prashno ka sms se jawab pane me inki koi aamadni nahi hoti hogi.

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  10. विचारणीय प्रश्न उठाता सार्थक आलेख..

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  11. देश के सभी नेता अमीर है और वे अपने मनोरंजन के लिए ऐसे आयोजन करेंगे ही|

    गरीबी मिटाने से इन्हें क्या मतलब? और गरीबी मिट गयी तो इसके नाम से जो वोट हासिल कर रहे है उनका क्या होगा??

    Gyan Darpan
    RajputsParinay

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  12. एक अच्छा मुदा और एक अच्छा लेख
    बधाई !

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  13. शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
    सूचनार्थ!

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