नवयौवना धरा 
इठला कर
इठला कर
कोमल दूर्वादल से 
अपने अंग-अंग में 
पीली सरसों का उबटन
लगा  
अपनी धानी चूनर को 
हवा में लहराती है 
किसी का भी मन 
चंचल हो जाता है ! 
सुबह-सुबह ओस की 
आच्छादित उसका 
सद्यस्नात भीगा बदन 
मन को सहसा 
आलोड़ित कर
आलोड़ित कर
झकझोर कर जगा देता
है 
और प्रार्थना के
स्वर
स्वत: ही अधरों से 
फूट पड़ते हैं ! 
प्रिय मिलन की आस
में 
नव कुसुमित बेला मोगरा
चम्पा चमेली की
वेणी से अपने केशों को  
सजा लिया है !  
माँग में हरसिंगार
का टीका
गूँथ कर पहन लिया है
! 
अपने सुन्दर सुडौल
तन पर
तरह-तरह के रंग
बिरंगे 
सुरभित सुमनों के 
मनमोहक गहनों को  
बड़ी कलात्मकता से 
सजा लिया है ! 
दुष्यंत के आगमन की
सूचना पा 
शकुन्तला स्वयं को 
सजा लिया करती थी !
हथेलियों में मेंहदी
के 
सुन्दर बूटे रचा लिये
हैं 
तो पैरों में भी  
चाँदनी के फूलों की पाजेब
चाँदनी के फूलों की पाजेब
छनछना रही है !   
सुर्ख गुड़हल के अर्क
का 
आलता पाँवों की शोभा
को 
द्विगुणित कर रहा है
! 
संध्या की बेला में
आने वाले 
अपने परदेसी प्रियतम
के 
स्वागत के लिये है !
सुदूर गगन में 
सारे संसार की सैर
कर 
थके हारे भुवन
भास्कर
जब अपनी प्रियतमा से
मिलने 
आकाश की ऊँचाइयों से
क्षितिज की सीमा
रेखा पर 
उतर कर नीचे आते हैं
उनकी अभ्यर्थना के
लिये  
हज़ारों दीप
प्रज्ज्वलित कर 
आरती का थाल हाथों
में लिये 
मंथर गति से झूमने
लगते हैं !  
और प्रियतम के गले
में 
वरमाल डालने को
उत्सुक 
धरा वधू के 
सलज्ज मुख को                         
एक सिंदूरी आभा 
रक्ताभ कर जाती है !  
दूर व्योम के पार अब
अनुरक्त दिवाकर अपनी
बाँधने के लिये 
धरा की सतह तक 
उतर आये हैं ! 
मधुमास की इस ऋतु
में
मदन के बाणों से
घायल हो  
प्रकृति भी पूरी तरह
से 
वासंती रंग में 
रंग गयी है और 
उसका यह अभिसार 
हज़ारों प्रणयी
हृदयों के 
तारों को छेड़ कर 
तरंगित कर जाता है !
 
साधना वैद 








 
 
धरा,अम्बर पूरी प्रकृति आपके शब्दों से सुवासित हो उठी है .......... बसंत सच में आ गया
ReplyDeleteवसंत की सुन्दर छटा बिखेर दी है आपके शब्द सुमनो ने... बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteभाव के हर रंग से सुसज्जित कविता मनमोहक है...बहुत ही सुंदर !!
ReplyDeleteशब्द शब्द भावविभोर करता हुआ ....आ ही गया है बसंत ...!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना साधना जी ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-02-2013) के चर्चा मंच-११५२ (बदहाल लोकतन्त्रः जिम्मेदार कौन) पर भी होगी!
सूचनार्थ.. सादर!
सुन्दर कविता ,प्रकृति के रंग बिखेरती हुयी
ReplyDeleteप्रकृति का मनभावन वर्णन .... बसंत आगमन पर पूरी धारा ही आनंदित हो रही है ... बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteपूरी प्रकृति पर लिख दिया तुमने |बाकी के लिए भी कुछ छोड़ा होता बेहद खूबसूतर शब्दों से सज गया वसंत का मौसम |बहुत बहुत सुन्दर और भाव पूर्ण रचना |
ReplyDeleteआशा
प्रकृति की खूबसूरती को शब्दों ने जैसे अलंकारित किया .
ReplyDeleteचित्रों का वसंत शब्दों के मुंह बोल रहा है !
प्रकृति की खूबसूरती को शब्दों ने जैसे अलंकारित किया .
ReplyDeleteचित्रों का वसंत शब्दों के मुंह बोल रहा है !
कितना खूबसूरत वसंत ऋतु का चित्रण किया आपने...-बहुत सुंदर!
ReplyDelete~सादर!!!
बसंत का बहुत ही अच्छा चित्र खींचा है आंटी।
ReplyDeleteसादर
sunder kavita ....uspar fhoolon ki sunderta.....wah.
ReplyDeleteशब्द-शब्द बसंत का अभिनन्दन करता हुआ ...
ReplyDeleteआभार इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिये
सादर
हर रंग मनमोहक है...बहुत ही सुंदर !!
ReplyDeleteवसंत का खूबसूरत चित्रण ....
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति से आप ने वसंत साकार कर दिया है साधना जी
हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteवसंत का बहुत ही लाजवाब मनभावन शब्दचित्र.... प्रकृति पर वसंत में खिले फूल से धरा के साजो श्रृंगार एवं संध्या बेला में भास्कर की अनुपम छटा...बहुत ही सराहनीय रचना...
ReplyDeleteवाह!!!
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! आभार आपका!
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