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Sunday, February 10, 2013

वसंतागमन











हर वसंत पर जब
नवयौवना धरा 
इठला कर
कोमल दूर्वादल से
अपने अंग-अंग में
पीली सरसों का उबटन लगा 
अपनी धानी चूनर को
हवा में लहराती है
किसी का भी मन
चंचल हो जाता है !
सुबह-सुबह ओस की
नन्हीं-नन्हीं बूंदों से
आच्छादित उसका
सद्यस्नात भीगा बदन
मन को सहसा 
आलोड़ित कर
झकझोर कर जगा देता है
और प्रार्थना के स्वर
स्वत: ही अधरों से
फूट पड़ते हैं !
प्रिय मिलन की आस में
उल्लसित हो 
अधीर धरा ने
नव कुसुमित बेला मोगरा
चम्पा चमेली की
वेणी से अपने केशों को 
सजा लिया है !  
माँग में हरसिंगार का टीका
गूँथ कर पहन लिया है !
अपने सुन्दर सुडौल तन पर
तरह-तरह के रंग बिरंगे
सुरभित सुमनों के
मनमोहक गहनों को  
बड़ी कलात्मकता से
सजा लिया है !
ठीक वैसे ही जैसे
दुष्यंत के आगमन की सूचना पा
शकुन्तला स्वयं को
सजा लिया करती थी !
हथेलियों में मेंहदी के
सुन्दर बूटे रचा लिये हैं
तो पैरों में भी  
चाँदनी के फूलों की पाजेब
छनछना रही है !  
सुर्ख गुड़हल के अर्क का
आलता पाँवों की शोभा को
द्विगुणित कर रहा है !
धरा वधू की यह साज सज्जा  
संध्या की बेला में आने वाले
अपने परदेसी प्रियतम के
स्वागत के लिये है !
सुदूर गगन में
सारे संसार की सैर कर
थके हारे भुवन भास्कर
जब अपनी प्रियतमा से मिलने
आकाश की ऊँचाइयों से
क्षितिज की सीमा रेखा पर
उतर कर नीचे आते हैं
उनकी अभ्यर्थना के लिये 
सारे पलाश और गुलमोहर
हज़ारों दीप प्रज्ज्वलित कर
आरती का थाल हाथों में लिये
मंथर गति से झूमने लगते हैं ! 
और प्रियतम के गले में
वरमाल डालने को उत्सुक
धरा वधू के
सलज्ज मुख को                        
एक सिंदूरी आभा
रक्ताभ कर जाती है ! 
दूर व्योम के पार अब
अनुरक्त दिवाकर अपनी
प्रियतमा को बाहुपाश में
बाँधने के लिये
धरा की सतह तक
उतर आये हैं !
मधुमास की इस ऋतु में
मदन के बाणों से घायल हो  
प्रकृति भी पूरी तरह से
वासंती रंग में
रंग गयी है और
उसका यह अभिसार
हज़ारों प्रणयी हृदयों के
तारों को छेड़ कर
तरंगित कर जाता है !  

साधना वैद

19 comments :

  1. धरा,अम्बर पूरी प्रकृति आपके शब्दों से सुवासित हो उठी है .......... बसंत सच में आ गया

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  2. वसंत की सुन्दर छटा बिखेर दी है आपके शब्द सुमनो ने... बहुत सुन्दर रचना

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  3. भाव के हर रंग से सुसज्जित कविता मनमोहक है...बहुत ही सुंदर !!

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  4. शब्द शब्द भावविभोर करता हुआ ....आ ही गया है बसंत ...!!
    बहुत सुंदर रचना साधना जी ...

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-02-2013) के चर्चा मंच-११५२ (बदहाल लोकतन्त्रः जिम्मेदार कौन) पर भी होगी!
    सूचनार्थ.. सादर!

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  6. सुन्दर कविता ,प्रकृति के रंग बिखेरती हुयी

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  7. प्रकृति का मनभावन वर्णन .... बसंत आगमन पर पूरी धारा ही आनंदित हो रही है ... बहुत सुंदर रचना

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  8. पूरी प्रकृति पर लिख दिया तुमने |बाकी के लिए भी कुछ छोड़ा होता बेहद खूबसूतर शब्दों से सज गया वसंत का मौसम |बहुत बहुत सुन्दर और भाव पूर्ण रचना |
    आशा

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  9. प्रकृति की खूबसूरती को शब्दों ने जैसे अलंकारित किया .
    चित्रों का वसंत शब्दों के मुंह बोल रहा है !

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  10. प्रकृति की खूबसूरती को शब्दों ने जैसे अलंकारित किया .
    चित्रों का वसंत शब्दों के मुंह बोल रहा है !

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  11. कितना खूबसूरत वसंत ऋतु का चित्रण किया आपने...-बहुत सुंदर!
    ~सादर!!!

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  12. बसंत का बहुत ही अच्छा चित्र खींचा है आंटी।

    सादर

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  13. sunder kavita ....uspar fhoolon ki sunderta.....wah.

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  14. शब्‍द-शब्‍द बसंत का अभिनन्‍दन करता हुआ ...
    आभार इस उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति के लिये
    सादर

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  15. हर रंग मनमोहक है...बहुत ही सुंदर !!

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  16. वसंत का खूबसूरत चित्रण ....
    सुंदर भावाभिव्यक्ति से आप ने वसंत साकार कर दिया है साधना जी

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  17. हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! आभार आपका !

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  18. वसंत का बहुत ही लाजवाब मनभावन शब्दचित्र.... प्रकृति पर वसंत में खिले फूल से धरा के साजो श्रृंगार एवं संध्या बेला में भास्कर की अनुपम छटा...बहुत ही सराहनीय रचना...
    वाह!!!

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  19. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! आभार आपका!

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