देश के सभी मतदाता इन दिनों अच्छी तरह से चुनाव के रंग में रंगे हुए
हैं ! शिक्षित अशिक्षित, नये पुराने, बूढ़े जवान सभी अपनी-अपनी सोच, समझ एवं
प्राथमिकताओं के अनुसार यह तय कर चुके हैं कि उन्हें किस पार्टी को और किस
प्रत्याशी को वोट देना है ! लेकिन दो या तीन प्रतिशत मतदाता ऐसे भी होते हैं जो
अपने मत का निर्धारण इस बात पर तय करते हैं कि हवा किसकी चल रही है ! इन्हीं लोगों
को प्रभावित करने के लिये जुलूस, रैलियाँ, तरह-तरह के विज्ञापन, रोड शो आदि किये जाते
हैं ! और यह ज़रूरी भी हैं क्योंकि जहाँ काँटे की टक्कर होती है वहाँ हार जीत का
निर्णय इन दो या तीन प्रतिशत वोटों की गणना से ही तय होता है ! नेताओं की सभाओं
में बड़ी भीड़ जमा करके अंतिम क्षण में निर्णय लेने वाले इन मतदाताओं को अपने पक्ष
में मतदान करने के लिये प्रेरित करने के प्रयास किये जाते हैं ! लेकिन नेता गण
चाहे जितने झुनझुने बजा लें, सभाएं कर लें या रोड शो और रैलियाँ कर लें ! मन
बहलाने के लिये लोगों की भीड़ भी भले ही जुट जाये वोट उनका किसी एक प्रत्याशी को ही
मिलेगा यह भी तय है ! आपने नोटिस किया है कभी अति उत्साही एवं फ़ुरसतिया लोगों के
वही चहरे आपको हर पार्टी के नेता की सभा और रोड शो में नज़र आ जायेंगे !
इस बार मैं आपसे कुछ ऐसा करने के लिये कहने जा रही हूँ जो शायद आपके
विचारों के प्रतिकूल हो ! पिछले कई वर्षों से देश में गठबंधन वाली मिली जुली
सरकारें संसद में आ रही हैं ! जो ना तो एक समर्थ सशक्त सरकार दे पाती हैं ना ही एक
सबल विपक्ष ! देश की जनता ने जाति, धर्म, पार्टी विशेष के लिये अपनी प्राथमिकता के
आधार पर किसे और कैसे वोट करना है यह पहले से ही तय कर रखा है ! इसीका नतीजा है कि
पिछले पच्चीस साल से देश में गठबंधन वाली सरकारें बनती चली आ रही हैं ! स्पष्ट
बहुमत वाली आख़िरी सरकार ३० वर्ष पहले १९८४ में श्री राजीव गाँधी की बनी थी ! उसके
बाद जितनी भी सरकारें बनीं वे सांसदों की खरीद फरोख्त के समीकरण साधने में और अपनी
कुर्सी बचाने के जोड़ तोड़ में ही व्यस्त रहीं और देश और जनता के हित की बातें पिछड़ती
चली गयीं ! इस बीच देश का कितना विकास हुआ, कितने घोटाले और घपले हुए, कितनी महँगाई
बढ़ी, कितना भ्रष्टाचार बढ़ा, आम जनता के हित में कितने क़ानून बने और कितने निर्णय
लिये गये आप सब देख ही रहे हैं ! इसका एकमात्र कारण यही है कि संसद में किसी भी
पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाता है इसीलिये देशहित में ना तो कोई ठोस कदम
उठाया जा सकता है ना ही कोई सकारात्मक प्रस्ताव पास हो पाता है ! जिस किसी पार्टी
के हित आड़े आ जाते हैं उसीके सांसद समर्थन वापिस लेने की धमकी देकर ब्लैकमेल करने लगते
हैं ! नतीजतन संसद का सारा वक्त व्यर्थ की छींटाकशी और अरोप प्रत्यारोपों के
शोरगुल में ही व्यतीत होने लगता है ! इस सबसे बचने के लिये आवश्यक है कि संसद में
एक स्पष्ट बहुमत वाली सरकार और एक दमदार सबल विपक्ष बनाने की दिशा में ठोस कदम
उठाये जायें ! इसके लिये अपने पूर्वाग्रह छोड़ कर समझदारी से वोट करना होगा ! अपने
क्षेत्र के उस प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करें जिसकी जीत सुनिश्चित है ! या तो
वह सरकार बनाने वाली पार्टी के हाथ मज़बूत करेगा या सशक्त विपक्ष को और मजबूती देगा
! सिद्धांतों के नाम पर निश्चित हारने वाले प्रत्याशी को वोट देकर आप ना तो उसका
भला कर रहे हैं ना ही देश का और अपना कीमती वोट भी जाया कर रहे हैं ! यह
प्रत्याशियों के लिये भी एक सबक होगा कि चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के
लिये पाँच साल तक अपनी ज़मीन तैयार करनी पड़ेगी ! जनता के बीच अपनी पहचान और
लोकप्रियता अर्जित करनी होगी तब ही जीत संभव हो सकेगी ! राजनीति टू मिनिट्स नूडल्स
जैसी रेसीपी नहीं है कि जुगाड़ करके रातों रात पार्टी से टिकिट हासिल कर लिया,
चुनाव जीत लिया और सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने के सपने सजा लिये !
कल मतदान का छठा चरण है ! ११७ सत्रह सीट्स के लिये कल मतदान किया
जायेगा ! आपसे अनुरोध है कि थोड़ा चिंतन करिये और देश को एक स्पष्ट बहुमत वाली
सरकार या एक समर्थ सार्थक विपक्ष देने की दिशा में ठोस कदम उठाइये ! इस बार यदि
अच्छी सरकार बन जाती है और उसको टक्कर देने के लिये एक दमदार विपक्ष का चुनाव हो
जाता है तो उसके सुपरिणामों का लाभ हम भी तो उठायेंगे ! है ना ? क्या कहते हैं आप
?
साधना वैद
उम्दा लेख |सोचने को बाधू करता है |
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