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Monday, April 13, 2015

बन्दर और कछुआ



एक कछुआ था | वह एक नदी में रहता था ! नदी के किनारे कुछ पेड़ लगे थे ! उन पेड़ों पर रहता था एक बन्दर ! कछुआ उस बन्दर को पेड़ों पर उछलता कूदता देखता रहता था ! उन दोनों में धीरे-धीरे कुछ दोस्ती भी हो गयी थी ! बच्चों तुमको तो पता है कि कछुआ एक ऐसा जीव है जो पानी और ज़मीन दोनों पर ही रह लेता है ! एक दिन कछुआ किनारे पर आकर धूप में बैठा हुआ था और बन्दर का तमाशा देख रहा था तभी बन्दर ने एक केले के पेड़ को नदी में बहते हुए देखा जिसमें फल भी लगे हुए थे ! अब बन्दर तो पानी में जा नहीं सकता था क्योंकि उसे तो तैरना आता नहीं था इसलिए उसने कछुए से कहा, “कछुए कछुए चलो हम दोनों मिल कर उस पेड़ को किनारे पर ले आते हैं फिर उसको आधा-आधा बाँट लेंगे !”
कछुआ बोला, “ठीक है !” और पानी में उतर गया ! तैरता-तैरता कछुआ पेड़ के पास पहुँच गया और केले के पेड़ को किनारे की ओर धकेलने लगा ! बड़ी मेहनत के बाद वह पेड़ को किनारे तक ले आया ! किनारे आने पर  बन्दर ने जल्दी से केले के पेड़ को ज़मीन पर खींच लिया और अपने दाँतों से पेड़ के दो टुकड़े कर दिए ! फिर वो कछुए से बोला, ”नीचे वाला बड़ा हिस्सा तुम्हारा और ऊपर वाला छोटा हिस्सा मेरा !” कछुए ने देखा फल तो ऊपर वाले हिस्से में ही लगे हुए हैं ! वह उदास तो हुआ पर चुप रहा ! बन्दर केले लेकर पेड़ पर चढ़ गया और कई दिन तक मज़े से केलों को खाता रहा ! 
कछुए ने देखा कि नीचे वाले हिस्से में तो खाली तना और जड़ ही थी ! कछुए ने सोचा इस तने को अगर वह ज़मीन में रोप देगा तो हो सकता है कि पेड़ ज़िंदा हो जाए ! उसने बड़ी मेहनत से वहीं गीली ज़मीन में एक गड्ढा खोदा और अपने हिस्से वाले कटे पेड़ को उसमें बो दिया और मिट्टी से ढक दिया ! रोज़ नदी से पानी लाकर वह उस पेड़ की सिंचाई भी करने लगा ! कुछ समय बाद जड़ों में से पत्तियाँ फूटने लगीं और केले के तीन नये पेड़ उग आये ! पेड़ बड़े हो गये और उनमें फूल भी निकल आये !

कछुआ समझ गया कि अब इनमें फल भी निकलेंगे और मेरी मेहनत सफल हो जायेगी ! बन्दर उसको रोज़ मेहनत करते हुए देखा करता था ! कछुए ने बन्दर को धन्यवाद दिया और कहा कि उसने बहुत अच्छा बँटवारा किया जिसकी वजह से आज उसके पास केले के तीन-तीन पेड़ हो गये हैं ! बन्दर खिसिया कर देखता रहता था ! जब पेड़ में फल आ गये तो बन्दर दोस्ती के बहाने रोज़ फल देखने आ जाता था और पेड़ पर चढ़ कर चोरी छिपे एक केला खा जाता था ! एक दिन कछुए ने उसे चोरी करते हुए देख लिया ! उसे बहुत गुस्सा आया ! 
उसने बन्दर को सही सबक सिखाने का निश्चय किया ! पास में बेर और करील की काँटे भरी झाड़ियाँ लगी हुई थीं ! उसने इन झाड़ियों की कुछ डालें काट कर जमा कर लीं ! अगले दिन बन्दर जब फल देखने के बहाने पेड़ पर चढ़ा तो कछुए ने काँटों वाली डालियों को खींच कर केले के पेड़ के नीचे रख दिया और खुद एक सूखे नारियल के खोल में छिप कर बैठ गया ! खोल के छेद में से वह सारा तमाशा देखने लगा ! केला खाकर बन्दर कूद कर जैसे ही नीचे आया उसके पैरों में काँटे घुस गये ! वह दर्द से चिल्लाता हुआ हाय-हाय करने लगा ! काँटे निकालने के लिये बन्दर उसी नारियल के खोल पर बैठ गया जिसमें कछुआ छिपा हुआ बैठा था ! बन्दर अपने पैरों से काँटे निकालने में लगा था और उसकी पूँछ लटक रही थी जो कछुए के मुँह के पास थी ! कछुए ने बन्दर को सबक सिखाने के लिये उसकी पूँछ अपने दाँतों से काट दी ! दर्द से बिलबिला कर बन्दर ने नीचे झाँक के देखा कि नारियल के खोल में कछुआ छिपा हुआ बैठा है तो उसने गुस्से के मारे नारियल ही उठा कर नदी में फेंक दिया ! पर बच्चों आप तो यह जानते ही हो कि कछुआ तो पानी में भी खुश रहता है ! इसलिए वह तो पानी में मज़े के साथ तैरने लगा ! पूँछ कटा कर बन्दर रोता हुआ पेड़ पर चढ़ गया और पेड़ पर रहने वाले पंछियों और गिलहरियों से कछुए की शिकायत करने लगा ! पर वे सब बन्दर की धूर्तता और मक्कारी को अच्छी तरह से जानते थे ! वे यह भी जानते थे कि कछुआ बहुत ही ईमानदार, सब्र वाला और मेहनती था ! बन्दर ने चालाकी से उसे पेड़ का वह हिस्सा दिया था जिसमें एक भी फल नहीं था ! और जब कछुए ने उस तने को बो कर मेहनत से पेड़ उगाए तो बन्दर उसके फल भी चुराने से बाज नहीं आया ! इसलिए उन्होंने बन्दर को ही दोषी माना और आगे से उसे कछुए के पेड़ों से दूर रहने की नसीहत भी दे डाली ! 
तो बच्चों कैसी लगी आज की कहानी ! मज़ा आया न आपको ? चालाकी और बेईमानी से कभी किसीका भला नहीं होता और धीरज रखने वाले तथा मेहनत करने वाले को हमेशा मीठा फल मिलता है !  

साधना  वैद
  

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