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Wednesday, November 18, 2015

श्रम की महिमा



(१)   
बूढ़ी नानी चाँद पर, रहती चरखा कात
मीठा फल उनको मिले, खटते जो दिन रात !
(२)
जो श्रम से डरते नहीं, बनते उनके काम
हाथ धरे जो बैठते, क्रोधित उनसे राम !
(३)
श्रमिक हृदय पर सोहता, स्वेद बिंदु का हार
इस भूषण के सामने, हर गहना बेकार !  
(४)
सोते मीठी नींद में, करते दिन भर काम
सख्त धरा की सेज पर, करते हैं आराम !
(५)
माथे माटी का तिलक, हाथों में औज़ार
सिर पर छत आकाश की, धरती का आधार !
(६)
मिहनत का इनको नहीं, मिलता पूरा दाम
छोटे दिल के सेठ से, मिलता यही इनाम !


साधना वैद

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