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Wednesday, December 14, 2016

मोक्ष - लघुकथा




 स्वप्नगंधा साहित्यिक मंच आपका हार्दिक स्वागत करता है। और अब समय है हमारी प्रतियोगिता के निर्णय का, प्रतियोगिता में सारी ही लघुकथायें बहुत अच्छी आई थी।पर हमारी मजबूरी है की हमें तीन लघुकथा ही चुननी थी। चुनी गई तीनों लघुकथाओं का कोई जवाब नहीं है।तीनों लघुकथाओं के गहन अध्ययन के बाद आदरणीय Mahendra Bhishma जी ने Sadhana Vaid की लघुकथा मोक्ष को सर्वश्रेष्ठ लघुकथा घोषित किया है अगली प्रतियोगिता का चित्र साधना जी देंगी ।और तीनों चुनी गई लघु कथाएं हमारी पत्रिका वैष्णव-गुण का हिस्सा भी बनेंगी।

मोक्ष  -  लघुकथा

अंतत: मुझे मेरी मंज़िल मिल ही गयी ! सारी उम्र इस तट से उस तट तक मैं सरिता की उत्ताल तरंगों पर दौड़ती रही ! कभी टनों सामान लेकर तो कभी अनगिनत यात्रियों को लेकर ! कभी युवाओं के लिए नौकायन का साधन बनी तो कभी दुर्भाग्य से नदी की धार में बहे हत्भागे प्राणियों को ढूँढने का ज़रिया बनी ! पतवार थामने वाले हाथ बदलते रहे और मैं किसी न किसी वजह से लहरों पर डोलती रही ! अहर्निश, अथक, अविराम ! जिस दिन दीनू बढ़ई ने अपने सुगढ़ हाथों से तैयार कर मुझे भीखू माँझी को सौंपा और भीखू ने अपनी रोज़ी रोटी के लिए मुझे नदी में उतारा उस दिन से आज तक आराम क्या होता है यह मैंने एक पल को भी न जाना ! दिन में भीखू की चाकरी की तो रात में हर उस नये मालिक की जिसको भीखू ने मुझे किराए पर दिया ! कई बार तो मेरी क्षत विक्षत देह को बिना पर्याप्त उपचार के ही भीखू ने खूब रगड़ा !
शायद इंसान की यही फितरत होती है ! सुनते हैं वृद्ध और अशक्त हो जाने पर ये अपने माता पिता को भी वृद्धाश्रम में छोड़ आते हैं ! वे माता पिता जिन्होंने उन्हें जन्म दिया, परवरिश की, पढ़ाया लिखाया, जीवन की धूप-छाँह में उनकी हिफाज़त की, उनकी खुशी के लिए अपने सारे सुख निमिष मात्र में कुर्बान कर दिए ! जब उन्हें ही ये बच्चे घर से निकालने में देर नहीं लगाते तो मैं तो एक नाव हूँ !
अच्छा हुआ जो कल तूफ़ान आया ! जर्जर इंसानी रिश्तों सी जीर्ण शीर्ण मेरी रस्सी भी टूट गयी और लहरें मुझे बहा कर इस अत्यंत सुरम्य सुरक्षित स्थान पर ले आईं जहाँ अपार सुख है, शान्ति है और विश्राम है ! आज मुझे सच्चे अर्थों में मोक्ष मिल गया है !
सर्वथा मौलिक, अप्रकाशित एवं अप्रसारित
साधना वैद
साधना वैद जी के साथ ,प्रेरणा गुप्ता जी की लघुकथा हौसले की पतवार और प्रतिभा जोशी पाण्डे जी की लघुकथा चट्टानों के पार हमारी साहित्यक पत्रिका वैष्णव -गुण में शीघ्र ही प्रकाशित की जायेगी।

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