पन्नों के बीच
सूखी सी पाँखुरियाँ
गीली सी यादें
जब आती हैं याद
जगातींं रातें 
भीगी सड़क
रिमझिम फुहार
हाथों में हाथ
जहाँ हों पास 
ज़मीन आसमान
जाना था साथ
तोड़ा गुलाब
अलकों में सजाया
मन हर्षाया 
सारे जग का 
प्यार जैसे आँखों में 
उतर आया
कितनी बातें
रूमानी कहानी में
कितने किस्से
प्रेम रंग में 
तर ब तर हुए 
सारे ही हिस्से
  उठाई गयीं   
ढेर सारी कसमें
ढेर से वादे
मन से सच्चे 
समर्पित थे दोनों 
वो सीधे सादे
बातों बातों में
जाने कब आ गयी
विदा की बेला
बिछड़ा साथी
नैनों से बह चला 
आँसू का रेला
डूबा संसार 
हुआ मन अकेला
छूटा जो हाथ
जी भर आया
धीमे से सहलाया
लाल गुलाब
 प्यारा तोहफा  
किताब में दबाया
पन्नों के बीच 
स्वप्न सरि में 
विचरने लगी वो 
नैनों को मींच
हुआ विछोह
अलग हुई राहें
फिर ना मिले
प्रेम के फूल 
सूखी उस डाली पे 
फिर ना खिले
व्यस्त हो गये
अपने संसार में
सदियाँ बीतीं
जीवन रीता 
रीते सुबहो शाम 
रातें थीं रीती
मिली जो अचानक
वही किताब
भीगी पलकें
छुल गया हाथ से
सूखा गुलाब
कितना कुछ 
जो बीता मन पर
ध्यान आ गया 
विरहाग्नि में
पल-पल जलना
याद आ गया
याद आ गया 
प्रेम का उपहार 
लाल गुलाब 
छाई बदली
उमड़ा नयनों से 
छिपा सैलाब
साधना वैद

 
 
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
८ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
इसे भेजने में कुछ विलम्ब हुआ लेकिन आपने फिर भी इसे आज के अंक में सम्मिलित कर लिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! बहुत प्यार भरा अभिवादन !
ReplyDeleteवाह !बेहतरीन दी जी
ReplyDeleteसादर
हमेशा की तरह लाजवाब सृजन...
ReplyDeleteवाह!!!
हार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी ! आभार आपका !
ReplyDeleteदिल से आभार आपका अनीता जी ! बहुत बहुत धन्यवाद !
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया प्रफुल्लित कर जाती है सुधा जी ! हृदय से आभार आपका !
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