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Sunday, December 15, 2019

मेरी अंजुरी




इस अंजुरी में समाई है
सारी दुनिया मेरी
माँ की ममता,
बाबूजी का दुलार,
दीदी का प्यार
भैया की स्नेहिल मनुहार
ये सारे अनुपम उपहार
अपने आशीर्वाद के साथ
मेरी अंजुरी में बाँध दिए थे माँ ने
विवाह के मंडप में
कन्यादान के समय !
उसी वक्त से सहेजे बैठी हूँ
इन्हें बड़े जतन से !
डरती  हूँ
कहीं सरक न जाएँ
मेरी शिथिल उँगलियों की
किसी झिरी से
और मुझे कहीं
अकिंचन ना कर जाएँ
जीवन के इस पड़ाव पर ! 
आज तक ये ही तो
दृढ़ता के साथ 
मेरे संग रहे हैं
मेरा सम्बल बन कर
हर विषम परिस्थिति में
हर प्रतिकूल पल में !
अपनी अंजुरी मैंने 
कस कर बंद कर ली है
क्योंकि मैं इन्हें 
खोना नहीं चाहती 
किसी भी मूल्य पर ! 

साधना वैद


17 comments :

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 15 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !

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  2. अपनी अंजुरी मैंने
    कस कर बंद कर ली है
    क्योंकि मैं इन्हें
    खोना नहीं चाहती
    किसी भी मूल्य पर !
    .
    वाह वाह वाह वाह। बेहतरीन सृजन मैम।

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    1. हार्दिक धन्यवाद अमित जी ! आभार आपका !

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (16-12-2019) को "आस मन पलती रही "(चर्चा अंक-3551) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं…
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  4. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण सृजन
    वाह!!!

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  5. वाह!!बहुत खूबसूरत सृजन ! साधना जी ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद शुभा जी ! आभार आपका !

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  6. इस अंजुरी में समाई है
    सारी दुनिया मेरी
    माँ की ममता,
    बाबूजी का दुलार,
    दीदी का प्यार
    भैया की स्नेहिल मनुहार
    ये सारे अनुपम उपहार
    अपने आशीर्वाद के साथ... बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीया दीदी जी

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    1. आभार आपका अनीता जी ! तहे दिल से शुक्रिया !

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  7. कहीं सरक न जाएँ
    मेरी शिथिल उँगलियों की
    किसी झिरी से
    और मुझे कहीं
    अकिंचन ना कर जाएँ
    यही डर मायके की अनुपम थाती है जो हमे आदर्श रूप में स्थिर रखता है ।
    बेहतरीन ......
    सादर ।

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    1. कविता आपको अच्छी लगी ! मन प्रसन्न हुआ ! हार्दिक धन्यवाद पल्लवी जी ! आभार आपका !

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  8. बहुत शानदार कविता |मन को छू गई |

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  9. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! आभार आपका !

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  10. सच एक पारिवारिक स्नेहिल बंधन जो दो परिवारों को तामउम्र बांधें रखता है, वह हमारे हाथ ही तो हैं , हमारी मुट्ठी ही है
    बहुत सुन्दर

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    1. हृदय से बहुत बहुत आभार आपका कविता जी ! दिल से शुक्रिया !

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