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Saturday, February 1, 2020

ताशकंद यात्रा – १० आ अब लौट चलें



बुखारा से अब ताशकंद लौटने का समय आ गया था ! पो ए कलान कॉम्प्लेक्स से बाहर निकलते ही हमारे गाइड महोदय हमें लंच के लिए एक ओपन एयर रेस्टोरेंट में ले गए ! सब खूब थके हुए थे और प्यासे थे ! यह रेस्टोरेंट एक खूब चौड़ी सी हाइवे के किनारे था ! हाइवे के दूसरी ओर एक बड़ी सी किले की दीवार जैसी थी ! हमारे गाइड ने बताया कि पुराना सिल्क रूट दीवार के उस तरफ से गुज़रता है ! मेरी कल्पना में माल असबाब से लदे ऊँटों, घोड़ों, अनगिनत व्यापारियों और सैनिकों के काफिले उभरने लगे जो कभी अतीत में सदियों तक इस रास्ते से गुज़रे होंगे ! कभी व्यापार के लिए, कभी लूट के लिए तो कभी युद्ध के लिए ! यह हाइवे इसी सिल्क रूट के समानांतर बनाया गया है आवागमन के लिए ! बहुत मन था कि उस ओर जाकर उस पुरानी सिल्क रूट पर कुछ कदम चल कर आऊँ लेकिन समय कम था ! खाने के बाद होटल से सामान भी उठाना था और स्टेशन भी पहुँचना था ! हमारी ट्रेन दिन की ही थी ! ग्रुप के कुछ सदस्य बहुत थक गए थे ! यहाँ बस को पास ही बुला लिया गया था तो बड़ी राहत की साँस ली सबने ! दिन चढ़ रहा था ! गर्मी भी बहुत हो गयी थी ! होटल से अपना सामान उठा हम लोग समय से स्टेशन पहुँच गए !
बुखारा से विदा लेने का समय आ गया था ! इस अल्पावधि के छोटे से मुकाम के बाद भी इस शहर से एक अनचीन्हा सा लगाव मन में हो गया था ! आपको एक बात और बताऊँ ‘बुखारा’ शब्द की उत्पत्ति ‘विहारा’ शब्द से हुई है ! ‘विहार’ शब्द महात्मा बुद्ध के स्थान को कहते हैं ! ‘विहारा’ शब्द कालान्तर में बदलते बदलते ‘बुखारा’ हो गया ! मघोक ए अत्तार मस्जिद की बुनियाद में बौद्ध मंदिर के अवशेष भी मिले हैं इससे इस बात का आभास तो मिलता ही है कि कभी इस स्थान पर बौद्ध धर्म का ध्वज भी अवश्य ही फहराया होगा !
उज्बेकिस्तान के तीन शहर हम देख चुके थे ! तीनों शहरों की खूबसूरत इमारतें, साफ़ सुथरी सड़कें और साफ़ सुथरे रेलवे स्टेशन देख कर दिल प्रसन्न हो गया ! इसका एक महत्वपूर्ण कारण कदाचित यह भी है कि वहाँ जनसंख्या का अंधाधुंध विस्तार नहीं है, लोग जागरूक हैं, अपने शहर अपने देश से प्यार करते हैं और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हैं ! स्टेशन पर बिलकुल भी भीड़ नहीं थी ! एक बड़े से शेड में यात्रियों के बैठने के लिए कई बेंचें सलीके से लगी हुई थीं ! जब तक हमारी ट्रेन प्लेटफार्म पर नहीं आई स्टेशन पर खड़ी दूसरी ट्रेन्स और वहाँ की गतिविधियों को मैं कैमरे में कैद करती रही ! कुछ ही देर में हमारी ट्रेन भी अपने प्लेटफार्म पर आ खड़ी हुई ! हमारे गाइड ने ठीक समय पर हमें हमारे कम्पार्टमेंट तक पहुँचाया ! डिब्बे के बाहर रेलवे के दो कर्मचारी प्रवेश द्वार पर चुस्त दुरुस्त बड़ी पाबंदी से खड़े हुए थे और लोगों को ऊपर चढ़ने में और उनका सामान चढ़ाने में सहायता कर रहे थे ! यह दृश्य बड़ा सुखदाई था ! अपने देश की याद आ गयी जहाँ रेल के डिब्बे से उतरते चढ़ते समय एक आम यात्री को किस तरह धक्का मुक्की का सामना करना पड़ता है ! जनरल कम्पार्टमेन्ट्स की दशा तो और भी शोचनीय होती है ! वहाँ भी यदि हर डिब्बे के सामने इसी तरह यात्रियों की सहायतार्थ रेलवे के एक दो कर्मचारी खड़े हो जाया करें तो यात्रियों को कितनी सुविधा हो जाया करे और अनेकों अप्रिय स्थितियों से बचाव भी हो जाया करे ! बेरोज़गारी की समस्या में भी शायद कुछ कमी आये ! भारत विशाल देश है और यहाँ का रेलवे का नेटवर्क भी उतना ही बड़ा है !
शीघ्र ही हमें उस डिब्बे से उतरना पडा ! रेलवे के टीटी ने हमारे टिकिट को देख कर बताया कि हमारे ग्रुप का रिज़र्वेशन दूसरे डिब्बे में था ! बिना किसी हाय तौबा के बड़े आराम से उतर कर हम अपने नियत डिब्बे में चढ़ गए और अपने अपने कूपों में आराम से बैठ गए ! यात्रा लम्बी थी लेकिन इसके बाद भी सब उत्साहित थे, खुश थे और जोश में थे क्योंकि इतने दिनों के बाद यह पहला मौक़ा मिला था ग्रुप के लोगों को जब वे एक दूसरे के साथ को भरपूर एन्जॉय करने वाले थे क्योंकि ट्रेन में इसके अलावा अन्य कोई काम था ही नहीं करने के लिए ! ट्रेन बुखारा से चल पड़ी थी !
यह ट्रेन भी बहुत साफ़ सुथरी और आरामदेह थी ! छ: छ: यात्रियों के कूपे थे ! हमारे ग्रुप के सभी साथी पाँच कूपों में समा गए ! हमारे कूपे में रायपुर की मधु सक्सेना जी, चंद्रकला त्रिपाठी जी और जगदलपुर से आई हुईं सुषमा झा जी और उनके पतिदेव श्री राजेन्द्र झा जी थे ! सफ़र में सहयात्री अगर हम ख़याल और हमनज़र और हम शौक मिल जाएँ तो वक्त कब और कैसे गुज़र जाता है पता ही नहीं चलता ! चंद्रकला जी का व्यक्तित्व बहु आयामी है ! बहुत ही सरल स्वभाव और विलक्षण प्रतिभा की स्वामिनी हैं वे ! साहित्य सेवा के साथ साथ उन्होंने समाज सेवा के लिए भी अपने जीवन का बहुत समय बिताया है ! उनके अनुभवों को सुन कर कोई भी इंसान सामाजिक समस्याओं के निवारण हेतु अपना सक्रिय योगदान देने के लिए बहुत प्रेरणा ले सकता है ! लोक गीतों और लोक कथाओं का उनके पास बड़ा ही समृद्ध खज़ाना है ! उनकी मधुर ओजमयी आवाज़ आज भी कानों में गूँजती है ! उनके साथ बिताये वो चंद घंटे मेरे लिए बहुत ही अनमोल हो गए क्योंकि उनसे बहुत कुछ नया सुनने और सीखने को मिला ! मधु सक्सेना जी जितनी अच्छी वक्ता हैं, कवियित्री हैं. और कुशल संचालिका हैं उतनी ही अच्छी गायिका भी हैं ! सुषमा झा जी तो बहुत ही बढ़िया गाती हैं इसमें कोई संदेह ही नहीं है ! संगीत का थोड़ा बहुत शौक मुझे भी है ! ताशकंद तक की यात्रा अपने अनुभवों को एक दूसरे के साथ साझा करते, गीतों ग़ज़लों को सुनते सुनाते कब समाप्त हो गयी पता ही नहीं चला ! बीच बीच में सब दूसरे कूपों के सहयात्रियों की खोज खबर भी ले रहे थे ! मधु जी, नीलिमा मिश्रा जी, यास्मीन मूमल जी, सुषमा झा जी ने एक से बढ़ कर एक खूबसूरत गीत सुनाये ! राजेन्द्र झा जी और हमारे पतिदेव आदर्श श्रोता की भूमिका निभाते रहे ! इतने कलाकार हों तो श्रोताओं का होना भी लाजिमी हो जाता है ! छ: घंटे की वह यात्रा बहुत ही सुखद बीती ! टिट बिट्स खाते पीते, हँसते गाते हम रात के दस बजे के करीब ताशकंद पहुँच गए !
स्टेशन पर हमारे ताशकंद के चुस्त दुरुस्त गाइड मोहोम्मद ज़ियाद अपनी बस के साथ हमारी अगवानी के लिए उपस्थित थे ! बस में बैठने के बाद सबको थकान का अनुभव होने लगा था ! बाहर की खुशगवार हवा मीठी थपकी का काम कर रही थी ! और सबको नींद आने लगी थी ! लेकिन यही तय हुआ कि पहले डिनर के लिए जायेंगे उसके बाद ही होटल जायेंगे ताकि आराम से सो सकें ! खाने का मेरा तो वशेष मूड नहीं था लेकिन ग्रुप में आप अपने ही मूड के अनुसार नहीं चल सकते सबका ख़याल रखना होता है ! स्टेशन से डिनर वाले होटल का रास्ता बड़ा लंबा लग रहा था ! शायद इसलिए भी कि बड़ी ज़ोर से नींद आ रही थी ! खैर अंतत: हम पहुँच ही गए होटल ऑस्कर जहाँ हमें डिनर के लिए जाना था ! सब कुछ बिलकुल तैयार था ! जाते ही खाना सर्व कर दिया गया ! खाना देखते ही जैसी हर्ष ध्वनि सबके गले से निकली मेरी नींद भी उड़ गयी ! सबकी बाछें खिली हुई थीं ! बिलकुल विशुद्ध भारतीय विधि से बनाया हुआ खाना था वह भी अत्यंत स्वादिष्ट जैसे अपने घर में अपनी रसोई में ही बना हुआ हो ! स्वादिष्ट तड़के के साथ अरहर की पीली दाल, गोभी आलू की सब्जी, मटर पनीर की सब्जी, पतली पतली रोटियाँ, प्लेन चावल, छाछ, गुलाब जामुन ! इनके अलावा और भी कई चीज़ें ! इतने दिनों के बाद अपने देश का स्वाद मिला आत्मा तृप्त हो गयी ! सबने छक कर खाना खाया ! हम लोगों के ग्रुप के लिए विशेष तौर पर एक भारतीय शेफ से यह खाना बनवाया गया था ! सच में मज़ा आ गया !
खाना खाने के बाद तो बस एक ही तलब लगी थी कि जल्दी से सो जाएँ ! होटल ऑस्कर से हमारा होटल ग्रैंड प्लाज़ा अधिक दूर नहीं था ! जल्दी ही हम लोग वहाँ पहुँच गए ! अगले दिन सुबह चिमगन माउन्टेन जाने का कार्यक्रम था ! जल्दी उठना भी था और सुबह की तैयारी भी करनी थी ! तो बिना वक्त गँवाए सब अपने अपने कमरों में पहुँच गए ! तो चलिये आज के संस्मरण को मैं भी यहीं विराम देती हूँ ! जल्दी ही फिर आपसे मुलाक़ात होगी अगली कड़ी में जब हम चलेंगे चिमगन माउन्टेन और वहाँ खूब सारी एडवेंचर एक्टिविटीज करेंगे भी और लोगों को करते हुए देखेंगे भी ! तो दोस्तों अभी विदा लेती हूँ आपसे !
शुभ रात्रि !


साधना वैद

8 comments :

  1. ऐसा सुंदर शब्दचित्र की मानों मैं भी इन दुर्लभ ऐतिहासिक स्थलों पर पहुँच गया हूँँ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद पथिक जी ! आभार आपका !

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (03-02-2020) को 'सूरज कितना घबराया है' (चर्चा अंक - 3600) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव



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    1. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

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  3. बहुत खूबसूरत यात्रा वृतांत दी 👏👏👏

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी ! आभार आपका !

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  4. बहुत ही सुन्दर यात्रावृत्तांत...सच में पढने पर ऐसा लगता है जैसे वहीं हम देख रहे हों सब...।
    बहुत लाजवाब।

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    1. दिल से शुक्रिया आपका सुधा देवरानी जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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