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Tuesday, February 4, 2020

ताशकंद यात्रा – ११ चिमगन माउन्टेन की सैर



२८ अगस्त की सुबह बहुत सुहानी थी ! आज कोई ट्रेन या बस पकड़ने की जल्दी नहीं थी ! आराम से नहा धोकर सुबह ब्रेकफास्ट के लिए नीचे उतरे ! सारे साथी लोग भी धीरे धीरे अवतरित हो रहे थे ! आज हमें चिमगन माउन्टेन जाना था ! पैदल चलने का कोई काम नहीं था ! इसलिए सब खुश थे और रात भर की भरपूर मीठी नींद के बाद बिलकुल तरोताज़ा थे ! नाश्ते के बाद सब बस में पहुँच गए और निश्चित समय पर बस चिमगन पहाड़ की तरफ चल पड़ी ! हर शहर का सुबह का नज़ारा अलग ही होता है और उनींदा अलसाया ताशकंद भी सुबह के इन पलों में बहुत सुन्दर लग रहा था ! एक बात यहाँ आकर बड़ी शिद्दत से महसूस हुई कि जनसंख्या अधिक ना हो तो शहरों को आसानी से साफ़ और व्यवस्थित रखा जा सकता है ! उज्बेकिस्तान का शुमार बहुत रईस देशों में नहीं है लेकिन साफ़ सफाई एक आदत है जिसे वहाँ के लोगों ने शायद इबादत की तरह अपनाया है ! कहने को तो हम भी कम धार्मिक नहीं लेकिन इस मामले में हम उनसे बहुत पीछे हैं ! बड़ी खुशी हुई देख कर कि सारे रास्ते में शहर का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं था जहाँ के मकान टूटे फूटे और जर्जर हों, सड़कें खराब हों या हरियाली का अभाव हो ! एक बात और विलक्षण लगी कि कहीं भी लाल बत्ती वाले ट्रेफिक सिग्नल नहीं दिखाई दिये ! ऐसा बहुत अच्छी रोड प्लानिंग से ही संभव हो पाता है और इसका सारा श्रेय रूस के इंजीनियर्स को जाता है ! सड़कों पर सिर्फ कारें और बस दिखाई देती हैं ! इसकी भी एक वजह है ! यहाँ का तापमान सर्दियों में शून्य से नीचे और गर्मियों में पचास से ऊपर रहता है इस वजह से दोपहिया या तीन पहिया वाहनों का चलाना व्यावहारिक नहीं होता ! कहीं कहीं इक्का दुक्का साइकिल सवार ज़रूर दिखे लेकिन वे मेन रोड पर नहीं होते थे ! सड़कों पर पुलिस और ट्रेफिक पुलिस ना के बराबर थी और बंदूकधारी तो बिलकुल भी नहीं !
चिमगन माउन्टेन का दो घंटे का रास्ता बहुत खुशगवार था ! सड़क के दोनों तरफ बड़े खूबसूरत फलों के पेड़ लगे हुए थे ! ग्रुप के सदस्य पूरे जोश के साथ पिकनिक के मूड में आ गए थे ! सब अन्ताक्षरी खेलने में व्यस्त हो गए ! बस में महिलाओं के कोरस की बुलंद आवाज़ गूँज रही थी ! एकाध जगह पर बस रुकी जहाँ ताशकंद के स्थानीय दुकानदार ड्राई फ्रूट्स व अन्य खाने पीने का सामान बेच रहे थे ! गाइड ने बताया यहाँ बारगेनिंग की गुंजाइश है क्योंकि ये लोग दाम बढ़ा कर बताते हैं तो ग्रुप की महिला सदस्यों को मज़ा आ गया ! सबने खूब सौदेबाजी करके बादाम की चिक्की और सूखे मेवों के पैकेट्स खरीदे !
अंतत: हम लोग ऊपर चिमगन पहाड़ पर पहुँच गए ! यह टाइन शान माउन्टेन की सबसे ऊँची चोटी है और १६०० मीटर्स की ऊँचाई पर स्थित है ! मौसम में विशेष अंतर नहीं दिखा ! ऊपर भी तापमान अच्छा खासा गर्म ही था ! यहाँ रोप वे से गहरी खाई को पार कर दूसरी तरफ और अधिक ऊँची पहाड़ी पर जाना था ! यह अनुभव सच में बहुत रोमांचक था ! देश विदेश में कई तरह की रोप वे पर बैठने का मौक़ा मिला लेकिन यहाँ की रोप वे वाकई में बहुत ही अनोखी थी ! बदहाल या कमज़ोर बिलकुल नहीं थी लेकिन इसमें सुरक्षा की व्यवस्था लगभग ना के बराबर थी ! अधिकांश जगहों पर रोप वे में बंद दरवाज़े वाले केबिन में बैठने की व्यवस्था होती है ! उसमें भी सीट बेल्ट बाँधने की अनिवार्यता होती है ! केबिन में बैठने के लिए रोप वे के स्टेशन पर ट्रॉली रुकती है ! सवारी उसमें बैठती हैं ! दरवाजों को कायदे से लॉक किया जाता है उसके बाद ट्रॉली आगे बढ़ती है ! लेकिन यहाँ ऐसे कोई इंतजाम नहीं थे ! केबिन के स्थान पर ट्विन चेयर्स वाली खुली सीट्स थीं ! जैसे ही खाली सीट आने वाली होती है आपको निश्चित स्थान पर खड़ा कर दिया जाता है ! रोप वे चलती रहती है रुकती नहीं ! सीट के आते ही आपको कूद कर पल भर में उस पर सवार हो जाना होता है ! दो सहायक आपकी मदद के लिए उस जगह पर खड़े होते हैं ! अगर आप चूक गए तो ट्रॉली आगे बढ़ जाती है आपके बिना ! कई बार उसके धक्के से लोग गिर भी जाते हैं ! हमारे ग्रुप की नीलिमा मिश्रा जी ऐसे ही गिर गयीं थीं ! यह तो प्रभु की कृपा रही कि उन्हें अधिक चोट नहीं लगी और वे शीघ्र ही मुस्कुराते हुए वहाँ से उठ गयीं ! सुरक्षा के नाम पर सीट बेल्ट का विकल्प मात्र लोहे की एक छड़ होती है जिसे कुर्सी पर बैठने के बाद आपको स्वयं ही अटकाना होता है ! हमारे लिए तो यह भी एक रोमांचक अनुभव था !
खैर लम्बे क्यू से गुज़र कर जब हमारा नंबर आया हम लोग अपनी सीट पर आराम से बैठ गए और रोप वे पर सवारी कर दूसरी पहाडी के शीर्ष पर पहुँच गए ! गहरी खाई के ऊपर से ऐसे गुज़रने में बड़ा मज़ा आ रहा था ! पहाड़ी के दूसरे छोर पर विशेष कुछ नहीं था ! सारा एडवेंचर बस रोप वे की राइड का ही था ! लेकिन वहाँ सबने खूब तस्वीरें खींचीं और खिंचवाईं ! हर लम्हे का आनंद लिया ! आधा घंटा वहाँ रुक कर हम लोग रोप वे से ही नीचे आ गए !
यहाँ से हम लोगों को लंच के लिए जाना था ! झील के किनारे कई बड़े खूबसूरत रिसॉर्ट्स बने हुए हैं ! वहीं चारवाक आरामगाह हमारे लंच का वेन्यू था ! सब कुछ बिलकुल तैयार था ! देख कर हैरानी हुई वहाँ भारतीय पर्यटकों के और भी कई ग्रुप्स थे ! इतने दिनों में यह पहला स्थान देखा जहाँ अच्छी खासी भीड़ थी और वाश रूम्स के आगे लम्बी क्यू लगी थी ! खाना स्वादिष्ट था और हम सबने उसका भरपूर आनंद लिया ! उसके बाद झील के किनारे घूमने के लिए चल दिए !
चिमगन माउन्टेन पर एक बहुत ही विशाल और खूबसूरत झील है ! जाड़ों के मौसम में जब यहाँ खूब बर्फ गिरती है तो यहाँ स्कीइंग भी खूब की जाती है ! इस स्थान को उज्बेकिस्तान का स्विट्ज़रलैंड भी कहा जाता है ! तरह तरह के एड्वेंचर स्पोर्ट्स यहाँ किये जाते हैं ! यहाँ पैरा ग्लाइडिंग और अनेक तरह के वाटर स्पोर्ट्स की व्यवस्था भी है ! इस झील का नाम चारवाक झील है ! जिसका अर्थ होता है चार बाग़ ! इस्लामी संस्कृति में अनेक सुन्दर स्थानों का नाम चार बाग़ रखा जाता है ! वास्तव में यह मान्यता है कि जन्नत में खूब हरियाली से परिपूर्ण चार बगीचे हैं जिनके बीच में सुन्दर नहर बहती है ! कुरआन शरीफ में इन चार बागों और बीच में बहने वाली नहर की खूब प्रशंसा की गयी है ! श्रीनगर का शालीमार बाग़, लखनऊ का चार बाग़, ताजमहल और हुमायूँ के मकबरे में इसी पैटर्न पर बने हुए बगीचे और बीच में बहता पानी इसी परिकल्पना को साकार करते हैं ! एक बात जो उज्बेकिस्तान में नोट की वह यह थी कि पुरानी सुन्दर और ऐतिहासिक इमारतों के साथ साथ रूसी सिविल इंजीनियरिंग और टाउन प्लानिंग के संयुक्त प्रयास ने इन स्थानों की खूबसूरती और उपयोगिता में चार चाँद लगा दिए हैं ! यह झील भी रूसी इंजीनियर्स की काबलियत का अद्भुत नमूना है ! आस पास के पर्वतों से निकलने वाली नदियों के जल को एक बड़े बाँध द्वारा रोक कर इस झील का निर्माण किया गया है ! एक तो पहाड़ी नदियों का शुद्ध जल और सर्दियों में पड़ी हुई बर्फ के पिघल जाने पर जो स्वच्छ जल मिलता है उसीसे इस अथाह गहराई वाली झील को बनाया गया है ! बाँध से नदियों का प्रवाह इस तरह नियंत्रित किया जाता है कि पूरे वर्ष उज्बेकिस्तान की नदियों में पानी का प्रवाह सम रूप में बना रहता है, पूरे देश में भरपूर हरियाली रहती है और फलों के बाग़ बगीचों और फसलों के लिए भी पानी की ज़रा भी कमी नहीं रहती !
ग्रुप के काफी सदस्य झील के किनारे पहुँच चुके थे ! झील का बिलकुल साफ़ नीला पानी हमें आमंत्रित कर रहा था ! आस पास कोई बोट दिखाई नहीं दे रही थी ! बड़ी देर तक झील के किनारे टहलते रहे ! झील के पास एक छोटा सा स्विमिंग पूल भी है ! दूर पहाड़ी पर पैरा ग्लाइडिंग हो रही थी ! पवन चक्कियाँ चल रही थीं ! झील में दूर तक स्पीड बोट्स चल रही थीं उन्हें देखते रहे ! हम सबका मन था बोटिंग करने का लेकिन कोई बोट इतनी बड़ी नहीं थी कि सब एक साथ बैठ जाते ! एक बार में बोट वाला आठ लोगों को ले जा रहा था ! तब सबने यही तय किया कि बारी बारी से ही जाएँ ! हम लोगों का नंबर जब आया लौटने का समय हो गया था ! फिर भी इस सुख से वंचित रहना नहीं चाहते थे ! अंतिम बैच में हम छ: लोग ही बचे थे ! पहले तो बोट वाला दो लोगों का इंतज़ार करता रहा फिर हमारी समय सीमा को देख वह हम छ: लोगों को ही ले गया ! उस स्पीड बोट में बहुत मज़ा आया ! कानों में सीटियाँ बज रही थीं ! लौट कर किनारे तो हम समय से आ गए थे लेकिन हमारी बस ऊपर रोड पर थी ! ढेर सारी सीढ़ियाँ थीं चढ़ने के लिए ! धीरे धीरे तो हम एवरेस्ट तक चढ़ जाएँ लेकिन जल्दी जल्दी चढ़ने में साँस फूल जाती है ! प्यास के मारे गला सूख रहा था ! फ़िक्र हो रही थी कि सब इंतज़ार कर रहे होंगे ! उसी दिन शाम को सम्मलेन का तीसरा सत्र होना भी तय हुआ था ! कहीं उसके लिए देर ना हो जाए यह चिंता भी थी ! ग्रुप के बाकी चार लोग हमसे बहुत कम आयु के थे ! सब फटाफट ऊपर चढ़ गए ! सबसे लेट हम ही पहुँचे ! लेकिन बड़ा अच्छा लगा हमें देखते ही हमारे गाइड सबसे पहले हमें पिलाने के लिए पानी लेकर आये और फिर हमें बस में चढ़ने में भी हेल्प की ! लौटते समय शहर में हम दूसरे रास्ते से आये ! यहाँ सड़क के दोनों ओर दूर तक काले कवर से ढके हुए फलों के पेड़ थे ! हमें लगा ये अंगूर की बेलें होंगी ! अमेरिका में नापा वैली में इतनी ही ऊँचाई के अंगूर के बगीचे देखे थे ! लेकिन गाइड ने बताया कि ये सेव के पेड़ हैं और उन्हें इस तरह इसलिए ढका जाता है ताकि पक्षी फलों को खराब ना करें !
यहाँ से होटल जाना था ! फ्रेश होकर शाम के ताशकंद सम्मलेन के समापन सत्र के लिए तैयार होकर फिर से हमें ऑस्कर होटल जाना था ! तो चलिए घूमने का सिलसिला आज का यहीं समाप्त करते हैं ! अगली कड़ी में आपको समापन सत्र की कुछ झलकियाँ दिखाउँगी ! तब तक के लिए विदा दीजिये !
नमस्कार एवं शुभ रात्रि !


साधना वैद

3 comments :

  1. रोचक यात्रा रही, मैम। उम्मीद है नीलिमा मैम को ज्यादा चोट नहीं आई होंगी। अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी।

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    1. हार्दिक धन्यवाद विकास जी ! आपने ध्यान से इस वृत्तांत को पढ़ा ! आभार आपका ! ईश्वर की कृपा रही कि नीलिमा जी को अधिक चोट नहीं आई ! हम रोप वे से जब लौटे तो वे हँँसती मुस्कुराती मिलीं ! बस इस बात का दुःख रहा कि वे रोप वे का आनंद नहीं उठा पाईं !

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  2. सही ढंग से प्रस्तुति की है |अब तो वहां जाने की कोई आवश्यकता ही नहीं है |तुम्हारी वृत्तांत
    लिखने की शैली ही ऎसी है की लगता है सच में वहां हो आए हैं |

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