घटायें सावन की
सिर धुनती हैं
सिसकती हैं
बिलखती हैं
तरसती हैं
बरसती हैं
रो धो कर
खामोश हो जाती हैं
अपने आँसुओं की नमी से
धरा को सींच जाती हैं
हज़ारों फूल खिला जाती हैं
वातावरण को
महका जाती हैं
और सबके होंठों पर
भीनी सी मुस्कान
बिखेर जाती हैं !
साधना वैद
उम्दा अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ओंकार जी ! हृदय से आभार !
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 17 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteवाह बहुत सुंदर।बिलखती है,तरसती है,बरसती है और को धोकर समाप्त हो जाती है ।बहुत सुंदर सखी।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुजाता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteदूसरों के चेहरों पर मुस्कान लाने के लिए खुद का अस्तित्व मिटा डालती हैं !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद गगन जी ! आभार आपका !
Deleteक्या बात है !! सुंदर रचना साधना जी ! घटाओं का रुदन धरती पर वैभव की सौगात लेकर आता है | सस्नेह शुभकामनाएं और प्रणाम |
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