बाट निहारूँ
कब तक अपना
जीवन वारूँ
आ जाओ प्रिय
तुम पर अपना
सर्वस हारूँ
सूरज डूबा
दूर क्षितिज तक
हुआ अंधेरा
घिरी घटाएं
रिमझिम बरसें
टूटे जियरा
कौन मिला है
कह दो अब नव
जीवन साथी
हम भी तो थे
इस धरती पर
दीपक बाती
कहाँ बसाया
किस उपवन में
नया बसेरा
मुझे बुझा के
पल पल अपना
किया सवेरा
साधना वैद
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 16-10-2020) को "न मैं चुप हूँ न गाता हूँ" (चर्चा अंक-3856) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद उर्मिला जी ! स्वागत है आपका ! बहुत बहुत आभार !
Deleteबहुत उम्दा।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद एवं बहुत बहुत आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
Deleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद गगन जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteअति सुन्दर ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अमृता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 19 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आभा जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहृदय से बहुत बहुत धन्यवाद आपका विमल जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteहृदय से स्वागत है सधु चन्द्र जी ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार !
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