आँचल उसके सपनों का था ,
आँचल में सितारे हसरतों के टंके थे ,
किरण मुरादों की लगी थी ,
इन्द्रधनुषी सतरंगी फूल उसकी उम्मीदों के थे !
अपने ख़्वाबों खयालों की दुनिया में
उस सतरंगी चूनर को ओढ़
वह सारी रात खोई रहती थी
अपने सपनों के राजकुमार की प्रतीक्षा में
जो उसे सफ़ेद अश्व पर बैठा कर
ले जाएगा किसी दूर देश में
जहाँ न दुःख होगा, न ग़रीबी,
न भूख, न बीमारी, न जिल्लत, न जहालत,
न आँसू, न अपमान !
होगा तो बस प्यार !
प्यार प्यार और सिर्फ प्यार !
लेकिन भोर की पहली किरण के साथ
जैसे ही उसकी आँख खुलती है
खुली आँखों से उसके सारे सपने
आँसू की तरह नीचे ढुलक जाते हैं
सपनों का आँचल सर से सरक जाता है
और वह बन जाती है
चाबी भरी पुरानी धुरानी
एक टूटी फूटी गंदी सी गुड़िया
जो अपनी जर्जर साड़ी को
कस कर कमर में लपेट कर
निरत हो जाती है रोज़ की नीरस दिनचर्या में
और सुनती रहती है सबके ताने,
पीती रहती है अपमान के घूँट
और सूनी आँखों से प्रतीक्षा करती रहती है
रात के आगमन की
जब फिर उसके सर पर
सपनों का आँचल होगा
और सफ़ेद अश्व पर सवार होकर
उसका राजकुमार उसके पास आयेगा
और उसे प्यार के गीत सुनाएगा
और जी लेगी वह एक सच्ची खुशी
उस झूठी सी एक रात में !
साधना वैद
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (15 -11-2021 ) को 'सन्नाटा बाजार में, समय हुआ विकराल' (चर्चा अंक 4249) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
Deleteसुंदर रचना🙏
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अंकित जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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ReplyDeleteरचना बहुत अच्छी और ह्रदय स्पर्शी है।
हार्दिक धन्यवाद अनिल जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteसुप्रभात
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति |उम्दा रचना |
हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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