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Monday, March 28, 2022

विभीषिका

 



प्यारी चिड़िया

आकुल मन से देख रही हूँ तुम्हें

बेहद काले गाढ़े धुँए के गुबार से

बाहर निकलते हुए

हैरान, परेशान,  

आकुल व्याकुल, रोते, चीखते,

कलपते, विलाप करते हुए !

आग में झुलसे जले

धराशायी पेड़ की पत्रहीन शाखों पर

ढूँढ रही हो न तुम

अपना आशियाना ?

ओ प्यारी चिड़िया

तुम्हारे नन्हे नन्हे चूज़े,

तुम्हारे संगी साथी सब

इस निर्मम मानव की उद्देश्यहीन

महत्वाकांक्षा की बलि चढ़ गए !

बड़े परिश्रम से बनाया गया

तुम्हारा आशियाना

आग की लपटों में झुलस कर

पल भर में राख हो गया !

प्यारी चिड़िया

कौन उत्तरदायी है

तुम्हारी सूनी आँखों में उमड़े

इन अनुत्तरित सवालों का ?

किसने हक़ दिया

इस हृदयहीन मानव को  

इतने पंछियों की ह्त्या का ?

इतने सुन्दर प्रदेशों को

इस तरह से नष्ट करने का ?

इतने सुरम्य स्थानों के

पर्यावरण को यूँ प्रदूषित करने का ?

लम्हों की इस खता की सज़ा

कौन जाने आने वाली कितनी पीढ़ियाँ

कितनी सदियों तक भोगती रहेंगी !

ओ प्यारी चिड़िया

काश मेरे अनवरत बहते आँसू  

तुम्हारे मन मस्तिष्क पर छाये

इस गहरे काले धुएँ की कालिमा को

कुछ तो कम कर पाते !

काश तुम्हारी दृष्टि

कुछ तो साफ़ हो जाती

ताकि तुम युद्ध की विभीषिका से ग्रस्त

इस प्रदेश में अपने रहने के लिए

कोई निरापद स्थान ढूँढ पातीं,

तुम्हारे कंठ से

करूण क्रंदन के स्थान पर

प्रेरणादायी मधुर गीत फूटते 

और जाने कितने वेदना विदग्ध 

हृदयों को कुछ आश्वासन 

कुछ शान्ति तो मिल जाती !

 

साधना वैद  


13 comments :

  1. बहुत सुन्दर

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    1. हार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  2. बहुत सूक्ष्म निरीक्षण किया गया है इस रचना में |भुत सुन्दर रचना है


























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    1. हार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  3. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-03-2022) को चर्चा मंच       "कटुक वचन मत बोलना"   (चर्चा अंक-4385)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

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  4. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार पम्मी जी ! सप्रेम वन्दे !

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  5. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद ज्योति जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  6. मानव की कठोरता और नादानी का फल न जाने कितने जीवों को भुगतना पड़ता है, मार्मिक रचना

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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  7. मार्मिक रचना

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    1. हृदय से आपका बहुत बहुत आभार ज्योति भाई ! बहुत बहुत धन्यवाद !

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