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Thursday, June 2, 2022

फूल

 





छा गए खिल कर धरा पर
हो गयी वसुधा मगन
खिल उठा मधुबन
हुआ सुरभित समूचा ये चमन
फिर भी हर इक फूल की
आँखें हैं नम मुखड़ा मलिन
हो पड़ा जैसे उपेक्षित
रत्न सागर के पुलिन
कौन जाने किस घड़ी
झरना उसे है शाख से
सोच कर आकुल है मन
बढ़ना है पर विश्वास से !




साधना वैद 

2 comments :

  1. बहुत खूब । जीवन आगे बढ़ने का नाम है ।।

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  2. हार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !

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