छा गए खिल कर धरा परहो गयी वसुधा मगनखिल उठा मधुबनहुआ सुरभित समूचा ये चमनफिर भी हर इक फूल कीआँखें हैं नम मुखड़ा मलिनहो पड़ा जैसे उपेक्षितरत्न सागर के पुलिनकौन जाने किस घड़ीझरना उसे है शाख सेसोच कर आकुल है मनबढ़ना है पर विश्वास से !
साधना वैद
बहुत खूब । जीवन आगे बढ़ने का नाम है ।।
हार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
बहुत खूब । जीवन आगे बढ़ने का नाम है ।।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संगीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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