मत बुलाओ श्याम
मुझको 
मैं नहीं आ
पाउँगी ! 
विरह की अग्नि
हृदय में जल रही  
पीर की धारा
नयन से बह रही  
पैर में हैं
झनझनाती बेड़ियाँ 
मत रुलाओ श्याम
मुझको 
मैं नहीं आ
पाउँगी ! 
पंथ सारा
कंटकों से है भरा 
पाट जमुना का उमड़
कर बढ़ रहा 
आँधियों की
गर्जना है गाँव में 
मत पुकारो
श्याम मुझको 
मैं नहीं आ पाउँगी
! 
बाँसुरी तेरी थिरकते
पग मेरे 
सौम्य छवि तेरी
हृदय बसती मेरे 
हटा लो मुरली अधर
से मोहना  
मत बजाओ श्याम
यह धुन 
मैं नहीं सुन
पाउँगी ! 
साधना वैद 

 
 
बहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसुन्दर सृजन तुम्हारा साधना | |
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जीजी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Delete