प्यासा सावन
व्यथित मन सूखे
पोखर ताल
फसलें सूखीं
शुष्क वन जग
में
पड़ा अकाल !
आकर बूझो
मोहना जन गण
मन की बात
हरण करो
विपदा सभी दूर
करो संताप
!
मोहन तेरी
मुरलिया हरती
मन की पीर
ठगी हुई सी
फिर रहीं
सखियाँ
यमुना तीर !
भोला है जग
साँवरे, नटखट
नंद किशोर
देखत लीला
थम गए दिवस
रैन औ’ भोर
साधना वैद
हाइकु दोहे
ReplyDeleteअभिनव प्रयोग
अति सुन्दर
हार्दिक धन्यवाद गोपेश जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद केडिया जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
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