नभ में घन
धरा माँ का आँचल
न मिला तो रो पड़े !
भीनी फुहार
भिगो गई बदन
सुलगा गई मन !
हैरान रवि
छिपा बादल ओट
कहीं भीग न जाऊँ !
लाये सावन
मधुरिम पलों की
स्मृतियाँ बारम्बार !
नर्म दूब पे
पाँव थकने तक
चलना सुख देता !
झूलों की पींगें
सखियों की ठिठोली
सावन की सौगात !
मीठी मल्हारें
गायें सारी सखियाँ
भेजें पी को पतियाँ !
साधना वैद
🙏🌹🌹🌹🌹🌹🙏
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विमल जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Delete