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Thursday, August 29, 2024

‘रोज़ी – द रिवेटर’

 


आप जानते हैं रोज़ी को ? कभी मिले हैं उससे ? नाम तो सुना होगा उसका ! अरे नाम भी नहीं सुना ? तब तो आपको मिलवाना ही होगा इस विलक्षण व्यक्तित्व की स्वामिनी रोज़ी से ! अमेरिका के इस प्रवास से पूर्व मैंने भी रोज़ी का नाम पहले कभी नहीं सुना था ! लेकिन जब उसके बारे में जाना, समझा और उसका थोड़ा सा परिचय मिला तो रोक नहीं सकी खुद को और उससे मिलने के लिए एक दिन अपने बेटे और पतिदेव के साथ जा ही पहुँची उसके घर जो सैन फ्रांसिस्को में है ! आप अभी तक इतिहास के पन्नों में दर्ज अनेकों उन दर्ज़नों महान महिलाओं से मिल चुके होंगे जिनके नाम समूचे विश्व में प्रसिद्ध हैं और जिनकी तस्वीरें, जिनके तैल चित्र, जिनकी मूर्तियाँ, जिनकी कहानियाँ संसार के बड़े बड़े संग्रहालयों में सजी हुई हैं ! लेकिन अगर आप रोज़ी से नहीं मिले तो मेरी नज़र में आप सच में एक बहुत बड़ी उपलब्धि से आज तक वंचित ही रह गए हैं ! मिलना चाहते हैं ना रोज़ी से ? तो चलिए मेरे साथ !
रोज़ी की कहानी जानने के लिए हमें काल खण्ड की दुर्गम वीथियों में प्रवेश कर समय की विपरीत दिशा में मुड़ कर लगभग अस्सी पिच्चासी वर्ष पीछे जाना होगा ! स्वाभिमानी, सक्षम, समर्थ, दृढ़ इच्छाशक्ति वाली और अदम्य उत्साह व जोश से भरी रोज़ी का अवतरण इसी काल में हुआ था जो आज भी सबके लिए मिसाल बन हुई है ! यह काल था द्वितीय विश्व युद्ध का ! हेनरी काइज़र उस समय के बहुत बड़े उद्योगपति थे और सैन फ्रांसिस्को के रिचमंड क्षेत्र में उनका एक बहुत बड़ा शिप यार्ड था जिसमें युद्ध के लिए बड़े-बड़े युद्ध पोत और उनसे जुड़ी अनेक तरह की सामग्री का निर्माण किया जाता था ! द्वितीय विश्व युद्ध का वह समय बहुत ही कठिन था जिसने तत्कालीन अमेरिकन्स के जीवन को आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक रूप से सबसे अधिक प्रभावित किया था ! अधिकतर पुरुष युद्ध के मोर्चे पर चले गए थे और घरों में केवल स्त्रियाँ, बच्चे और बुज़ुर्ग लोग रह गए थे ! रोज़ी के म्यूज़ियम में कई परिवारों के लोगों के अनुभव प्लेकार्ड्स पर लिखे हुए दिखाई देते हैं ! उसमें एक प्लेकार्ड पर किसी व्यक्ति ने लिखा था कि उसने अपने बचपन में अपने घर में किसी भी पुरुष को नहीं देखा ! आपको जान कर आश्चर्य होगा कि उस समय के अमेरिका में भी लोगों की यही मानसिकता थी कि औरतों को केवल घर सम्हालना चाहिए ! उन्हें बाहर जाकर काम करने की कोई ज़रुरत नहीं है ! क्या हम भारतीयों की मानसिकता से मिलती जुलती नहीं लगी आपको भी यह बात ? मैंने जब वहाँ पत्थर पर इसे खुदा हुआ देखा तो मुझे भी बहुत हैरानी हुई थी ! लेकिन जब जीवन में ऐसी कठिन परिस्थितियाँ आ जाएँ तो घर परिवार चलाने के लिए स्त्रियों को भी बाहर तो निकलना ही पड़ेगा ! भारत हो या अमेरिका ! यह भी एक निर्मम यथार्थ है !
हालात ऐसे थे कि मर्दों के युद्ध में चले जाने से घर में बड़ा भारी आर्थिक संकट पैदा हो गया ! मजबूर होकर स्त्रियों को काम के लिए घर से बाहर निकलना पड़ा ! मर्दों के वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में उनकी स्वीकार्यता न के बराबर थी ! कोई भी उन्हें काम पर लेने के लिए तैयार नहीं था ! न वे मर्दों की तरह प्रशिक्षित थीं, न उनकी तरह ताकतवर थीं और शायद न ही उनकी तरह होशियार थीं ऐसा बड़े बड़े व्यापारिक संस्थानों को चलाने वाले लोगों की राय थी ! ‘रोज़ी द रिवेटर’ का जन्म इसी काल में हुआ ! स्त्रियों को फैक्ट्रीज में काम करने के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ा ! कदम-कदम पर स्वयं को सिद्ध करना पड़ा और मर्दों के इस संसार में कई तरह की असमानताओं, अन्याय और शोषण को झेलना पड़ा ! रिचमंड के शिप यार्ड से इस संघर्ष का सूत्रपात हुआ ! स्त्रियाँ यहाँ आकर नौकरी पर रखे जाने के लिए मालिकों को हर संभव तरीके से कन्विंस कराने की कोशिश करती थीं लेकिन परिणाम कभी संतोषप्रद नहीं निकलते थे ! वे यह सिद्ध करना चाहती थीं कि ऐसा कोई भी काम नहीं है जो मर्द कर सकते हैं और वे नहीं कर सकतीं ! रिवेटिंग, वेल्डिंग, मशीनिंग, शिपफिटिंग, पाइपफिटिंग, पेंटिंग, इलेक्ट्रीशियन आदि का कोई भी काम वे मर्दों से बेहतर कर सकती हैं उन्हें सिर्फ मौक़ा दिए जाने की दरकार है ! महिलाओं का यह संघर्ष दिन ब दिन उग्र होता गया और इसकी गूँज बड़े बड़े उद्योगपतियों तक भी पहुँचने लगी ! इस आन्दोलन से जुड़ी हर महिला रोज़ी कहलाई और “ We can do it.” इस आन्दोलन का नारा बन गया ! रोज़ी के नाम से १९४३ में एक गाना सारे अमेरिका में बहुत लोकप्रिय हुआ ! ‘रोज़ी’ सारे अमेरिका की महिलाओं की आवाज़ बन गयी ! गीत अंग्रेज़ी में है ! इसका मुखड़ा लिख रही हूँ ! आप चाहें तो गूगल पर सर्च कर इसे सुन सकते हैं ! गीत के बोल इस प्रकार हैं –
“She is a part of the assembly line
She is making history
Working for victory
Rosie the riveter.”
हेनरी काइज़र, जो उस वक्त के सबसे बड़े उद्योगपति थे, ने समय की नज़ाकत को समझा ! उन दिनों अमेरिका का वेस्ट कोस्ट युद्ध सामग्री बनाने का केंद्र स्थल था ! द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान समूचे विश्व में जितनी युद्ध सामग्री की खपत हो रही थी उसका ४०% अमेरिका में बन रहा था ! जिन कारखानों में कारें व विविध प्रकार के अन्य समाजोपयोगी सामान बनाये जा रहे थे वे सभी अपने काम छोड़ कर युद्ध सामग्री बनाने में जुट गए ! सैनफ्रांसिस्को के बे एरिया से, जिसमें रिचमंड शिपयार्ड भी शामिल था, ४५% कार्गो टनेज और 20% युद्ध पोतों के टनेज की आपूर्ति की जाती थी ! हेनरी काइज़र के पास युद्ध से जुड़ी सामग्री बनाने के बड़े-बड़े ऑर्डर्स थे और शिप यार्ड में कामगारों की भारी कमी थी ! उसने महिलाओं को काम पर रखना शुरू किया ! महिलाओं का आन्दोलन रंग लाया ! उन्हें काम तो मिला लेकिन यहाँ भी उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा ! एक ही तरह के काम के लिए उन्हें मर्दों से कम मेहनताना दिया जाता था ! उन्हें अपने सीनियर्स की झिड़कियाँ खानी पड़ती थीं और बात-बात पर अपमानित होना पड़ता था ! फिर भी उस समय हर रोज़ी में अदम्य जोश था, हौसला था और थी स्वयं को मर्दों के बराबर योग्य सिद्ध करने की उत्कट लालसा ! स्त्रियों के लिए कामों की कमी नहीं थी ! शिप यार्ड्स में और फैक्ट्रीज में काम करने के अलावा भी कई क्षेत्र थे जैसे शिक्षा विभाग, नर्सिंग, पुलिस आदि जिनमें उस समय की महिलाओं ने अभूतपूर्व योगदान दिया और स्वयं को सिद्ध किया !
युद्ध के इस काल ने जहाँ लोगों को जीवन की कठिनाइयों और अभावों से परिचित कराया तो वहीं कुछ क्षेत्र में कई वर्जनाएं भी टूटीं ! काले गोरे का भेद उन दिनों भी चरम पर था जिन्हें हमेशा भेदभाव का शिकार होना पड़ता था उन्हें व्हाईट अमेरिकन्स के साथ एक स्तर पर काम करने के अवसर मिलने लगे ! काले पुरुष तो युद्ध के मोर्चे पर भेज दिए जाते थे कारखानों में काली स्त्रियों को भी काम मिलने लगा ! यद्यपि उनका वेतन व्हाइट अमेरिकन्स से कम होता था लेकिन भेद भाव और अस्पर्श्यता की मानसिकता में फर्क आया ! उनमें भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता आई और वे भी कालान्तर में समानता के स्तर पर आने के लिए संघर्षरत हुए ! विश्व युद्ध के समापन के बाद जब पुरुष मोर्चे से वापिस आ गए तो अनेकों महिलाओं को और दोयम दर्जे के इन अमेरिकन्स को नौकरी से हटा दिया गया ! लेकिन उस वक्त देश और समाज के प्रति किये गए उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता !
द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद रिचमंड का यही शिपयार्ड ‘रोज़ी द रिवेटर’ का म्यूज़ियम बना दिया गया ! अभी यह ‘रोज़ी द रिवेटर / वर्ल्ड वार II, होम फ्रंट नेशनल हिस्टोरिक पार्क, कैलीफोर्निया’ के नाम से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है ! तो यह था ‘रोज़ी’ का घर ! महिला सशक्तिकरण की अद्भुत मिसाल थी रोज़ी ! आज भी कितने लोगों की प्रेरणा बनी हुई है ‘रोज़ी’ इसे कोई नहीं जानता ! स्कूल के बच्चों को यह म्यूज़ियम दिखाया जाता है ! म्यूज़ियम के एक रैक में दर्शनार्थियों एवं स्कूली बच्चों की भावपूर्ण प्रतिक्रियाओं की चिटों को बड़े करीने सजाया गया है ! कुछ दूरी पर स्थित शिपयार्ड में अब एक कॉफ़ी हाउस और रेस्टोरेंट बना दिया गया है जिसका इंटीरियर अभी भी पुराने ज़माने का ही है ! हमने भी यहाँ की कॉफ़ी का आनद लिया ! म्यूज़ियम से कुछ दूर बे एरिया के समीप इस शिप यार्ड में बना हुआ ‘रेड ओक विक्ट्री’ नाम का एक युद्ध पोत भी पर्यटकों के देखने के लिए रखा हुआ है ! इसके निर्माण में कितनी ‘रोज़ियों’ का अकथनीय श्रम लगा होगा यह सोच कर ही रोमांच हो आता है ! मैं भी ‘रोजी’ से कितना प्रेरित हुई हूँ इसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है ! लेकिन यह सच है कि नारी सशक्तिकरण की मिसाल यह ‘रोज़ी’ युग-युग तक किसी भी स्वाभिमानी नारी के आत्मबल को कभी झुकने नहीं देगी ! उस ज़माने की अनेक रोज़ी चिर निंद्रा में लीन हो चुकी हैं ! लेकिन म्यूज़ियम की इंचार्ज लेडी ऑफीसर ने बताया कि दो रोज़ी अभी भी जीवित हैं वे कभी कभी इस म्यूज़ियम में आती हैं ! वे अब बहुत वृद्ध हो चुकी हैं ! हमारा नमन उनको ! दोस्तों इन ‘रोज़ियों’ का शरीर थक गया है ! शायद इनके पास ज्यादह वक्त भी न हो ! लेकिन ‘रोज़ी द रिवेटर’ उसी साहस, उसी जोश और उसी हौसले के साथ आज भी ज़िंदा है ! वह कालजयी है ! वह चिर युवा है ! उसे कभी कोई पराजित नहीं कर सकता ! आज भी समूचे ब्रह्मांड में उसकी ललकार गूँज रही है जिसका कोई दमन नहीं कर सकता !
“We can do it.” “We can do it.” “We can do it.”


साधना वैद







2 comments :

  1. रोचक,प्रेरक और ज्ञानवर्धक संस्मरण।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३० अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !

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