ज़हर रुसवाई का घुट-घुट के पिया करते हैं
तुम्हारी याद में जीते हैं हम न मरते हैं
सफर तनहाई का काटे नहीं कटता हमसे
अब तो आ जाओ कि दीदार को तरसते हैं ।
ओ निर्मोही तरस रहे हैं हम तेरे दीदार को ।
आ जाओ अब करो सार्थक तुम अपने इस प्यार को
तुमने ही तो ज़ख्म दिए हैं और किसे दिखलाएं हम
कब तक सोखेंगे आँचल में नैनों की इस धार को ।
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद