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Monday, March 3, 2025

दीदार








ज़हर रुसवाई का घुट-घुट के पिया करते हैं 
तुम्हारी याद में जीते हैं हम न मरते हैं
सफर तनहाई का काटे नहीं कटता हमसे 
अब तो आ जाओ कि दीदार को तरसते हैं ।


ओ निर्मोही तरस रहे हैं हम तेरे दीदार को ।
आ जाओ अब करो सार्थक तुम अपने इस प्यार को
तुमने ही तो ज़ख्म दिए हैं और किसे दिखलाएं हम 
कब तक सोखेंगे आँचल में नैनों की इस धार को ।


चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद