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Sunday, July 20, 2025

कुण्डलियाँ

 



पेड़ों पे झूले पड़े सखियों का है शोर

खनक रही हैं चूड़ियाँ मन आनंद विभोर

मन आनंद विभोर मगन मन झूल रही हैं

कजरी, गीत, मल्हार, सभी दुख भूल रही हैं

बोली कोयल, फूल ‘साधना’ वन में फूले

आया सावन मास पड़े पेड़ों पर झूले !



रास रचैया की सुनी, जब मुरली की तान।

भागीं जमुना तीर पर, ज्यों तरकश से बाण।।

ज्यों तरकश से बाण, किशन को ढूँढ रही हैं ।

थिरक उठे हैं पाँव मुदित मन झूम रही हैं ।।

होतीं सभी विभोर, ‘साधना काकी, मैया।

दिखे न कोई और,  कान्ह सा रास रचैया ।


चित्र - गूगल से साभार 



साधना वैद


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