चलती रही , मुश्किल सफ़र पे , ज़िंदगी मेरी
माँगा न कुछ , फिर क्यों भला तू ने , नज़र फेरी
तू भी तो कर, नज़रे इनायत , ओ खुदा मेरे
करती रहूँ , कब तक यूँ ही मैं , बंदगी तेरी !
जनमे राम, हर्षाए पुरवासी , सजी नगरी
बजे बधावे , गावें मंगल गान , धरें गगरी
द्वार-द्वार पे , सजे वंदनवार , सजी रंगोली
जागे न लल्ला , धीमे धीमे धरतीं , मैया पग री !
साधना वैद
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कब तक यूँही करूँ बंदगी तेरी ......वाह
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद पूनम जी ! आभार आपका !
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 5 नवंबर 2025 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
दिल से आभार पम्मी जी ! सप्रेम वन्दे !
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 06 नवंबर 2025 को लिंक की जाएगी है....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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हार्दिक धन्यवाद रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद हरीश जी ! आभार आपका !
Deleteसिवाय बन्दगी के भला और क्या काम है, राम के सिवा अधरों पे कौन सा नाम है
ReplyDeleteआपको नेरे हाइकु मुक्तक अच्छे लगे मन मगन हुआ अनीता जी ! दिल से आभार आपका !
Deleteबढ़िया
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !
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