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Monday, November 3, 2025

हाइकु मुक्तक - २

 




चलती रही , मुश्किल सफ़र पे , ज़िंदगी मेरी 
माँगा न कुछ , फिर क्यों भला तू ने , नज़र फेरी 
तू भी तो कर, नज़रे इनायत , ओ खुदा मेरे 
करती रहूँ , कब तक यूँ ही मैं , बंदगी तेरी ! 

जनमे राम, हर्षाए पुरवासी , सजी नगरी 
बजे बधावे , गावें मंगल गान , धरें गगरी 
द्वार-द्वार पे , सजे वंदनवार , सजी रंगोली 
जागे न लल्ला ,  धीमे धीमे धरतीं , मैया पग री ! 


साधना वैद 

12 comments :

  1. कब तक यूँही करूँ बंदगी तेरी ......वाह

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    1. हार्दिक धन्यवाद पूनम जी ! आभार आपका !

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 5 नवंबर 2025 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. दिल से आभार पम्मी जी ! सप्रेम वन्दे !

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 06 नवंबर 2025 को लिंक की जाएगी है....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    1. हार्दिक धन्यवाद रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

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  4. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद हरीश जी ! आभार आपका !

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  5. सिवाय बन्दगी के भला और क्या काम है, राम के सिवा अधरों पे कौन सा नाम है

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    1. आपको नेरे हाइकु मुक्तक अच्छे लगे मन मगन हुआ अनीता जी ! दिल से आभार आपका !

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  6. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आभार आपका !

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