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Thursday, December 25, 2025

सेंटा न आया

 


आज बड़ा दिन था ! सुबह से सड़कों पर बड़ी चहल-पहल थी ! पास के चर्च से बड़े ही सुन्दर हिम्स की आवाज़ सुनाई दे रही थी ! लगातार लोगों के समूह प्रार्थना करने के लिए चर्च में जा रहे थे ! रात को ठीक 12 बजे यीशु के आगमन के साथ ही चर्च के घंटे बज उठे थे ! पुनिया ने पुल के नीचे अपनी छोटी सी खोली को बड़े उत्साह के साथ यथासंभव सजाया था ! उसने सुना था क्रिसमस के दिन सेंटा क्लॉज़ आते हैं और बच्चों के लिए ढेर सारे तोहफे भी लाते हैं ! सुबह से अपने तकिये के नीचे, गद्दी के नीचे वह बार-बार टटोल कर देख चुकी थी ! अभी तक कोई उपहार उसे नहीं मिला था ! सड़क पर तमाम बच्चों को बड़े सारे उपहारों के पैकिट लिए वह अपने माता-पिता के साथ जाते हुए देख रही थी ! दिन के 12 बज चुके थे ! उसका चेहरा कुम्हला गया था ! आँखों में आँसू भर आए थे ! सोच रही थी क्या सेंटा भी उपहार बड़े घर के बच्चों के लिए ही लाते हैं ! उस जैसे ग़रीब बच्चों के लिए नहीं ? सुबह से कुछ खाया भी नहीं था ! अस्फुट स्वरों से उसके मुख से दुआ निकल रही थी, "और कुछ भले ही न लाओ न लाओ प्यारे सेंटा बस एक रोटी ही ला दो ताकि तुम्हारी राह देखने के लिए आँखें तो खुल सकें !"  

अपना घर
जतन से सजाया
सेंटा न आया

 

साधना वैद


Wednesday, December 17, 2025

नानी का डंडा

 




घर में शादी की खूब रौनक और चहल-पहल थी ! सारा घर खुशी-खुशी शादी की रस्मों रिवाजों को मनाने में लगा हुआ था ! नई बहू नव्या के साथ उसकी छ: वर्षीय भांजी इशिका साए की तरह लगी रहती थी ! पल भर को भी नव्या से दूर रहना उसे मंज़ूर न था ! सुबह होते ही झटपट तैयार होकर नव्या के पास आ जाती और अपनी मीठी-मीठी बातों से उसका मन बहलाए रखती ! नए घर नए परिवेश में नव्या का भी इशिका के साथ बड़ा प्यारा सा रिश्ता जुड़ गया था ! दोनों आपस में खूब हिल-मिल गई थीं !
आज नई बहू से पहली बार रसोई छुलवाई गई थी ! नव्या ने अपनी सासू माँ के आदेश का पालन करते हुए सबके लिए बड़े अरमानों के साथ मूँग की दाल का हलवा बनाया था ! खूब केसर, पिश्ते, बादाम, काजू, किशमिश डाल कर पाक कला की अपनी सारी प्रतिभा को उसने आज इस हलवे में मिला दिया था ! इशिका रसोई में भी नव्या के आस-पास ही मंडराती रही !
डाइनिंग टेबिल पर सब हलवे का बेसब्री के साथ इंतज़ार कर रहे थे ! सबने खूब सराह-सराह कर हलवा खाया और नव्या को नेग में ढेर सारे नोटों से भरे हुए लिफ़ाफ़े भी मिले ! जैसे ही सासू माँ ने हलवा चखा उन्होंने नव्या को प्यार से अपने पास बुलाया और बोलीं, “बेटा हलवा तो बहुत अच्छा बना है लेकिन इसमें चीनी कुछ ज्यादह है ! सबको यहाँ शुगर की बीमारी है इसलिए आगे से कम शक्कर डालना !”
“नहीं माँ ! हलवे में चीनी तो बराबर है भाभी से कहिये आगे से ग्लव्ज़ पहन कर बनाएं हलवा ! उनके हाथों की मिठास भी तो घुल गयी है इसमें !” यह चुटकी देवर सौरभ की थी ! सारा कमरा ठहाके से गूँज उठा !

इशिका अलर्ट हो गयी ! उसने नव्या को नीचे झुका लिया और बड़े रहस्यमय अंदाज़ में उसके कान में फुसफुसा कर बोली, “मामी आप बिलकुल मत डरना मैंने नानी की डंडा अपने कमरे में छुपा दिया है !”
नव्या हैरान थी, “क्यों इशिका ? अब नानी को चलने में परेशानी होगी ना ! तुमने डंडा क्यों छिपाया
?
“वो मेरी दादी बुआ से रोज़ कहती हैं ठीक से खाना बनाना नहीं सीखेगी तो ससुराल में रोज़ सास के डंडे खाने पड़ेंगे ! इसीलिये मैंने नानी का डंडा छिपा दिया !”  

साधना वैद


Sunday, December 14, 2025

त्रिपदा छंद

 



सर पर प्रभु का हाथ

हिम्मत भी दे साथ


कोई न देगा मात !


मेरे मन के मीत

तुझसे मुझको प्रीत


लेंगे दुनिया जीत !


दी जो मुझको हार

हिम्मत का आधार


है तेरा उपकार !


मुश्किल में थी आन

राह न थी आसान


पानी थी पहचान !


पाकर तुमको पास

जागा यह विश्वास


कुछ पल होते ख़ास !






साधना वैद

Friday, December 12, 2025

कुछ कतौता

 




छाया कोहरा !

घर में घुसा रवि

छिपा कर चेहरा !


ठण्ड की रात

भारी अलाव पर

छाया घना कोहरा !


सीली लकड़ी

बुझ गया अलाव

जल उठा नसीब !


आज भी ‘हल्कू’

बिताते सड़क पे

पूस की ठण्डी रात


कहाँ बदला 

नसीब किसानों का 

स्वतन्त्रता के बाद !


साधना वैद 




Wednesday, December 10, 2025

दहेज़ का दानव

 



दहेज़ की समस्या शाश्वत रूप से हमारे समाज में व्याप्त है और हर आम और ख़ास इंसान इससे प्रभावित होता ही है ! समाज में अगर वर्ग भेद नहीं होता, सभी लोगों की आर्थिक स्तर एक सा होता और अमीर गरीब का अंतर न होता तो शायद यह समस्या भी नहीं होती लेकिन ऐसा है नहीं इसीलिए यह समस्या भी विकराल रूप धारण करती जा रही है ! 
पहले के युग में कम उम्र में बच्चों की शादियाँ कर दी जाती थीं ! कम उम्र के लड़कों पर घर गृहस्थी की ज़िम्मेदारी डाल दी जाती थी ! जिसे इतनी छोटी उम्र में वे उठाने में समर्थ नहीं होते थे ! लड़कियों का पिता की सम्पत्ति में कोई अधिकार नहीं होता था इसलिए वे अपनी बेटी को विवाह के समय यथा सामर्थ्य इतना सामान दे देते थे कि उनकी गृहस्थी की गाड़ी सुचारू रूप से चल सके और बेटी पराई हो जाएगी तो उसका पिता के घर की सम्पत्ति में कोई अधिकार नहीं रह जाएगा इसलिए प्रेम स्वरुप माता पिता बेटी को विवाह के समय ही उसके हिस्से का धन दे दिया करते थे ! यह एक स्वस्थ परम्परा थी ! लेकिन कालांतर में इसमें विकार आने लगे ! अमीर घर की लड़कियों को मिलने वाली दहेज़ की राशि और सामान को देख देख कर लोगों में अजब तरह की ईर्ष्या और होड़ की भावना पनपने लगी और दहेज़ लोभी लोगों ने अपनी बहुओं को मायके से और पैसा और कीमती सामान लाने के लिए दबाव डालना शुरू किया और लड़कियों का जीवन ससुराल में बहुत ही दुःख भरा और यातनामय होने लगा ! यह दहेज़ प्रथा का विकृत स्वरूप था !
 दहेज़ विरोधी कानून भी बने ! बच्चों की शादी की उम्र भी बढ़ा दी गई लेकिन दहेज़ के दानव से पीछा नहीं छूटा ! लड़कियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए नए क़ानून बने जिनमें पिता की सम्पत्ति में उसका भी बराबर का हिस्सा सुरक्षित किया गया लेकिन इसकी वजह से परिवार में ही आतंरिक विघटन और क्लेश का वातावरण बन गया और हालात ऐसे बिगड़े कि अब विवाहित लड़की को न तो ससुराल में सम्मान मिलता था न ही मायके में उसका स्वागत होता था ! जबकि वह दोनों ही घरों में समपत्ति की अधिकारिणी थी !
इन सारी बातों के अलावा शादी विवाह में इतना दिखावा और फिजूलखर्ची का चलन हो गया कि आम औसत आमदनी के व्यक्ति के लिए ऐसी आडम्बरपूर्ण शादियाँ करना बिलकुल बस के बाहर हो गया ! लेकिन बेटी के ससुराल पक्ष के लोगों की डिमांड्स पूरी करने के लिए उन्हें इस तकलीफ से भी गुज़रना पड़ता है जो कि बहुत ही शर्मनाक एवं कष्टप्रद अनुभव होता है ! 
इस समस्या का निदान क़ानून बनाने से नहीं होगा ! दहेज़ विरोधी क़ानून तो हमारे संविधान में पहले से ही मौजूद हैं लेकिन उनका पालन कहाँ होता है ! शादियों में लेन देन और आडम्बर समय के साथ साथ बढ़ता ही जाता है और कोई इसे रोक नहीं पाता ! इसके लिए समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों को ही मिल जुल कर पहल करनी होगी ! शादियाँ बिलकुल सादगी के साथ सीमित खर्च में ही होनी चाहिए चाहे दूल्हा दुल्हन के घर वाले कितने भी अमीर क्यों न हों ! उसके बाद उपहारों के लेन देन से किसीका कोई सम्बन्ध नहीं होता यह बिलकुल निजी बात होती है ! न इसका कोई प्रदर्शन होना चाहिए ! इस व्यवस्था से दहेज़ लोभी लोगों की मानसिकता में ज़रूर फर्क आएगा ! जो खर्च वे स्वयं नहीं कर सकते उसके लिए बहू के घरवालों पर दबाव डालते हैं ! शादियाँ सादगी से की जाएँगी तो बेवजह के दिखावे और शान शौकत के प्रदर्शन में किये जाने वाले खर्चों में भी कमी आएगी और इससे कई परिवारों को ज़रूर राहत मिलेगी !




साधना वैद

Sunday, December 7, 2025

आप तो ऐसे न थे – लघुकथा

 



शोभना बड़े पशोपेश में थी ! सोमवार को उसके मोहल्ले की किटी पार्टी थी ! इस बार सारी महिलाओं ने मिल कर ड्रेस कोड रख लिया था ! किटी के दिन सबको लाल बॉर्डर की नीली साड़ी पहननी थी ! सारी महिलाएं खूब सज धज कर आती थीं किटी पार्टी में ! सादगी पसंद शोभना बहुत खूबसूरत भी थी और बहुत स्मार्ट भी लेकिन संयुक्त परिवार में रहने की वजह से उसका हाथ हमेशा तंग रहता था ! उसकी ड्रेसेज बहुत मँहगी नहीं होती थीं लेकिन सुरुचिपूर्ण जरूर होती थीं और वह उनमें ही बेहद खूबसूरत लगती थी ! शोभना घर की सबसे बड़ी बहू थी ! ज़िम्मेदार भी और किफायतशार भी ! वह कभी पति के सामने भी अपनी कोई फरमाइश नहीं रखती थी ! उसके पति नीलेश ने भी अपने बड़े बेटे होने का हर फ़र्ज़ बखूबी निभाया और अपनी ज़रूरतों को हमेशा सबसे पीछे रखा ! नीलेश उसे भी गाहे बे गाहे फिजूलखर्ची से बचने की सलाहें अनजाने ही दे दिया करते थे ! अति स्वाभिमानी शोभना इसीलिये सदैव संकुचित सी रहती थी !
शोभना के पास न तो नीले रंग की कोई साड़ी ही थी न कोई सूट ! उसने तय कर लिया कि वह पार्टी में नहीं जाएगी ! लेकिन उसका मन बहुत उदास था !
नीलेश ने उसका अनमनापन भाँप लिया, “क्या बात है शोभना कुछ परेशान सी हो !”
“नहीं तो ! ऐसी तो कोई बात नहीं है !” मुँह फेर कर शोभना ने बात टाल दी !
“अच्छा ? तुम्हारी किटी नहीं हुई अभी तक इस महीने ! कब होगी बताया नहीं तुमने !”
“सोमवार को है लेकिन मैं नहीं जा रही इस बार !”  
“क्यों ? तुम्हें तो बड़ा मज़ा आता है किटी में ! क्यों नहीं जाओगी ? कुछ चाहिए क्या ?”
शोभना चकित थी ! क्या नीलेश को टेलीपैथी भी आती है ! उसकी आँखें भर आईं !
“हाँ, इस बार सबने ड्रेस कोड रखा है लाल बॉर्डर की नीली साड़ी पहननी है सबको ! मेरे पास नहीं है इसीलिये नहीं जाऊँगी !” शोभना बोल ही पड़ी !
“बस इतनी सी बात ! चलो जल्दी से तैयार हो जाओ ! बाज़ार चलते हैं तुम्हारी साड़ी लाने !”
शोभना मुग्ध होकर नीलेश को देख रही थी !
उसके मौन अधर बार-बार दोहरा रहे थे, “आप तो ऐसे न थे !”



साधना वैद