छाया कोहरा !
घर में घुसा रवि
छिपा कर चेहरा !
ठण्ड की रात
भारी अलाव पर
छाया घना कोहरा !
सीली लकड़ी
बुझ गया अलाव
जल उठा नसीब !
आज भी ‘हल्कू’
बिताते सड़क पे
पूस की ठण्डी रात
कहाँ बदला
नसीब किसानों का
स्वतन्त्रता के बाद !
साधना वैद
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