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Thursday, January 9, 2014

बिखरे रंग




मौन रहती
अविरल  बहती
जीवन धारा !



बादल छाये
फसल मुस्कुराये 
हिया हर्षाये !



बरसा पानी
धरती हुलसानी
चूनर धानी !

४ 

प्रभु जो मिले 
भावों के दीप जले 
हृदय खिले !
                                   
  

हूँ सबल मैं 
जीत लूँगी निराशा 
प्रबल आशा !





पंथ दुर्गम
हुई राह निर्जन
साहसी मन !


साधना  वैद