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Saturday, June 14, 2014

मेरे बाबूजी

पितृ  दिवस पर विशेष
 
 

बाबूजी मेरे
घने बरगद का
साया हों जैसे !

मन्त्र आपका
श्रम और तप का
जीत दे गया !

झूला तो झूले
आपकी बाहों जैसा
झूला है कहाँ !

हर चिंता का 
समाधान होते थे
मेरे बाबूजी !
  
अनुशासन
संयम औ नियम  
सीखे आपसे !
  
पकड़ कर
बाबूजी की उँगली
नापा जहान !

जब उछाला
हवा में बाबूजी ने
छुआ गगन !

सद्विचार और
सही जीवन मूल्य
दिये आपने !

ऋण आपका
उतार न पायेंगे
जीवन भर !

  आज भी आप  
आदर्श हैं हमारे
सदा रहेंगे !





साधना वैद

Wednesday, June 11, 2014

कह दो कान्हा


पत्थर की मूरत से पीड़ा कौन कहे
मन के दावानल की ज्वाला कौन सहे 
सारे जग की पीर तुम्हें यदि छूती है
तो कान्हा क्यों मेरे दुःख पर मौन रहे !
  
विपथ जनों को राह तुम्हीं दिखलाते हो
पर्वत जैसी पीर तुम्हीं पिघलाते हो 
भवतारण दुखहारन करुणाकर कान्हा
मेरे अंतर का लावा किस ओर बहे !

नैनों में बस एक तुम्हीं तो बसते हो
मधुर मिलन की सुधियों में तुम हँसते हो
वंंशी के स्वर के संग जो बह जाती थी
उर संचित उस व्यथा कथा को कौन गहे !

बने हुए क्यों निर्मोही कह दो कान्हा
फेर लिया क्यों मुख मुझसे कह दो कान्हा
चरणों में थोड़ी सी जगह मुझे दे दो
राधा क्यों अपने माधव से दूर रहे !

श्याम तुम्हारे बिन यह जीवन सूना है
क्यों साधा यह मौन मुझे दुःख दूना है
थी तुमको भी प्रीत अगर बतलाओ तो
कैसे तुम अपने स्वजनों से दूर रहे !

साधना वैद


Monday, June 9, 2014

कुल्लू की दुर्घटना




हैदराबाद इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र कुल्लू मनाली की सुरम्य वादियों में अपनी छुट्टियाँ मनाने के लिये आये थे ! सारे नौजवान, उत्साह, उल्लास और जोश खरोश से भरपूर ! किसे पता था कि वे यहाँ काल कवलित होने के लिये आ रहे हैं ! किसकी गलतियों की सज़ा उन्हें मिली है ! सुबह से इसी न्यूज़ पर सारा ध्यान केंद्रित है ! सभी एक दूसरे पर दोष मढ़ने के लिये तैयार हैं ! लारजी डैम के अधिकारी कहते हैं कि बाँध का पानी छोड़ने से पहले चेतावनी दी गयी थी ! छात्रों की ओर से जो प्रतिनिधि रिपोर्टर्स के साथ बात कर रहे थे वे कह रहे थे कि कोई चेतावनी नहीं दी गयी थी ना ही उस स्थान पर, जहाँ छात्र रिवर राफ्टिंग कर रहे थे, कोई खतरे का साइनबोर्ड ही लगा हुआ है !

जब व्यास नदी में रिवर राफ्टिंग की ही जाती है तो बाँध से पानी छोड़ते समय लारजी डैम के अधिकारियों ने पहले सुनिश्चित क्यों नहीं किया कि नदी में कोई राफ्टिंग तो नहीं कर रहा है ? इसके लिये कौन उत्तरदायी है ? और जिस पॉइंट से राफ्टिंग की जाती है वहाँ के अधिकारियों या कर्मचारियों से पहले पूछा क्यों नहीं गया कि पानी छोड़ रहे हैं कोई नदी में है तो नहीं ? यह दुर्घटना संवादहीनता की वजह से हुई है ! डैम के अधिकारियों को पानी छोड़ने से पहले राफ्टिंग पॉइंट के संचालकों से बात करनी चाहिए और जब वे सकारात्मक जवाब दें तब ही पानी छोड़ना चाहिए ! यदि आप लोगों को ध्यान हो तो इसी तरह की दुर्घटना कुछ साल पहले इंदौर के पाताल पानी में भी हुई थी जब इसी तरह पीछे से पानी का बहुत तेज़ रेला आया था और कई लोग असंतुलित होकर बहते हुए पानी के साथ झरने से कई फुट नीचे गिर गये थे और अपनी जान गँवा बैठे थे ! ऐसा क्यों है कि हम गलतियों पर गलतियाँ करते जाते हैं और उनसे कभी सबक नहीं लेते ! अगर लेते होते तो आज की कुल्लू की यह दुर्घटना घटित नहीं होती !  

इस लापरवाही का खामियाजा उन कई परिवारों को भुगतना पड़ेगा जिनकी तपस्या का सुपरिणाम निकलने को था लेकिन उन्हें अनायास गहरे अंधकूप में फेंक दिया गया है ! इनमें से कई बच्चे अपने घर परिवार के मजबूत स्तंभ के रूप में दायित्व उठाने लिये तैयार होकर अपनी शिक्षा के समापन की ओर चरण बढ़ा रहे थे ! इस हृदय विदारक घटना की क्षतिपूर्ति किस मुआवजे से की जा सकती है ? क्या हमारी पंगु, लचर और गैरजिम्मेदार व्यवस्था इस घटना से कुछ सबक लेगी और इस बात का वचन दे सकेगी कि भविष्य में कभी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होगी ?  



साधना वैद

  

Thursday, June 5, 2014

संघर्ष



रसोई में बैठी गृहणी
चिंतित और संकुचित है
देगची में थोड़ी सी सब्जी है
दिन भर खट के आये
घरवाले के लिये बचा लूँ
या फिर बढ़ती आयु के
बच्चों की थाली में परोस दूँ ?
और कब तक उन्हें
अचार के खाली मर्तबान से
रगड़-रगड़ कर रोटियों के
निवाले खिलाने होंगे ?
कब तक नन्हे बच्चे
एक दूसरे के हाथ के निवाले पर
चील कौओं की तरह
झपट्टा मारते रहेंगे ?  
नलों में कई दिनों से
पानी नहीं आ रहा
मोहल्ले का हैंड पम्प
सूखा पड़ा है !
इतनी प्रचंड गर्मी में
पसीने से नहाने के सिवा
अन्य कोई विकल्प नहीं !
बिजली का तो कोई
ठिकाना ही नहीं !
कहो तो सारा दिन ही न आये
हाथ से पंखा झलते-झलते
कंधे जवाब दे चुके हैं !
छोटी सी झुग्गी वाले घर में
ना तो आँगन है ना ही छत !
रोशनी और हवा के लिये
घर के बाहर ही शरण लेनी पड़ती है !`
बड़ी होती बिटिया को
कैसे घर के बाहर सुलाऊँ ?
दरिंदों की नज़रों से
कैसे उसे छिपाऊँ ?
माथे की लकीरें और
गहराती जाती हैं !
बालों की सफेदी हर रोज़
बढ़ती जाती है लेकिन
चिंताएँ घटने का नाम ही
नहीं लेतीं !
समस्याएँ कभी सुलझती
नज़र ही नहीं आतीं !
हे माँ ! यह संघर्ष
कितने दिन और करना होगा ?
कितने दिन और 
हर पल हर लम्हा 
इसी तरह
 मर-मर कर जीना होगा ?
वो 'अच्छे दिन'
जिनके आने के बारे में
कई महीनों से हर वक्त
सुनते आ रहे हैं
कब आयेंगे ?
आयेंगे भी या नहीं
    कौन जाने !   



साधना वैद 

चित्र - गूगल से साभार

Sunday, June 1, 2014

दरकी धरा




चित्र - गूगल से साभार ! 


साधना वैद