हर्ष और उल्लास का बन कर प्रतीक,
सुबह का सूरज गगन पर है चढ़ा ।
अश्रु आँखों में लिये बोझिल हृदय,
चाँदनी का काफिला आगे बढ़ा ।
भोर की पहली किरण के साथ में,
अल्पना के बेल-बूटे हैं सजे ।
खेत पोखर पनघटों के रास्ते,
उल्लसित मन ग्रामवासी हैं चले ।
झूम कर प्रकृति सजाती साज है,
है वसंती भाव स्वागत गान में ।
नत वदन है खेत में सरसों खड़ी,
गा रहे पंछी सुरीली तान में ।
ओस की हर जगमगाती बूंद में,
और कल कल छलकती जलधार में ।
बालकों की निष्कपट मुस्कान में,
मन्दिरों में गूँजते प्रभुगान में ।
घन चलाते हाथ के आघात में,
लपलपाती भट्टियों की ज्वाल में ।
भोर के सूरज तेरी अभ्यर्थना,
बोझ लादे हर श्रमिक की चाल में ।
आँख से पर्दे हटा अज्ञान के,
चीर दे अवसाद का यह अंधकार ।
जगमगा दे विश्व ज्ञानालोक से,
दूर कर दे मनुज चिंतन के विकार ।
मान लेना तू मेरी यह प्रार्थना,
हो तेरा अनुग्रह हमारी श्वास पे ।
विश्व सारा कर रहा स्वागत तेरा,
इसी आशा और इस विश्वास पे ।
साधना वैद्
sundar rachana
ReplyDelete--------------------------"VISHAL"
wahh wahhh aapki apni baat or chitta dono sundar hai....swagat hai....mere blog par bhi padharen
ReplyDeleteJai Ho Magalmay Ho
sundar soochana dene ke liye badhai ho.blog ki is duniya me apka swagat hai
ReplyDeleteरसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति
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