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Saturday, December 20, 2008

मुक्तक

न दिल में ज़ख्म न आँखों में ख्वाब की किरचें ,
फिर किस गुमान पर इतने दीवान लिख डाले ,
तमाम उम्र जब इस दर्द को जिया मैंने ,
तब कहीं जाके यह छोटी सी ग़ज़ल लिखी है ।



तू यथार्थ है, स्वप्न भी तू, कल्पना भी तू ,
तू विचार है, कर्म भी तू, भावना भी तू ,
तू पराग है, पुष्प भी तू, गन्धना भी तू ,
तू प्रकाश है, दीप भी तू, दर्शना भी तू ।



ज़िन्दगी जल के मेरी ख़ाक हुई जाती है ,
तेरी यादों के दिये और जले जाते हैं ।


आँख से आँसू हथेली पर गिरे, मोती बने ,
कान में दो बोल जिह्वा से झरे, अमृत बने ,
पुण्यदा है प्रिय तुम्हारी हर छवि मेरे लिये ,
पास आकर अंक में भर लो कि तन कंचन बने |

7 comments :

  1. कल 23/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. सभी मुक्तक बहुत सुन्दर

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  3. खुबसूरत... अच्छे मुक्तक...
    हार्दिक बधाई...

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  4. साधना जी ,

    आखिर ये मोती ढूंढ ही लिए गए ... बहुत सुन्दर मुक्तक ..

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  5. बेहतरीन...
    खूबसूरती से पिरोये हुए..

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  6. बहुत सुन्दर भावपूर्ण मुक्तक |
    'तू यथार्थ है-------दर्शाना भी तू '
    बहुत अच्छी पंक्तियाँ |
    आशा

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  7. आपके ब्लोग पर आ कर मन प्रसन्न हो गया।
    "पास आकर अंक में भर लो कि तन कंचन बने |"
    अत्यंत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति ।

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