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Tuesday, May 5, 2009

एक आम आदमी की कहानी

जीवन के महासंग्राम में दिन रात संघर्षरत एक आम इंसान के कटु अनुभव से अपने सुधी पाठकों को अवगत कराना चाहती हूं और अंत में उनके अनमोल सुझावों की भी अपेक्षा रखती हूँ कि उन विशिष्ट परिस्थितियों में उस व्यक्ति को क्या करना चाहिये था ।
मेरे एक पड़ोसी के यहाँ चोरी हो गयी । चोर घर में ज़ेवर, नकदी और जो भी कीमती सामान मिला सब बीन बटोर कर ले गये । पड़ोसी एक ही रात में लाखपति से खाकपति बन गये । उस वक़्त उनको जो आर्थिक और मानसिक हानि हुई उसका अनुमान लगाना तो मेरे लिये मुश्किल है लेकिन उसके बाद उन्हें सालों जो कवायद करनी पड़ी और जिस तरह से न्याय पाने की उम्मीद में वे पुलिस की दुराग्रहपूर्ण कार्यप्रणाली की चपेट में आकर थाने और कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा लगा कर चकरघिन्नी बन गये इसे मैने ज़रूर देखा है । चोरी की घटना के बाद उन्होंने थाने में रिपोर्ट लिखा दी । तीन चार दिन तक लगातार जाँच की प्रक्रिया ‘ सघन ‘ रूप से चली । परिवार के सदस्यों सहित सारे नौकर चाकर और पड़ोसियों तक के कई कई बार बयान लिये गये । फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट, फोटोग्राफर्स के दस्तों ने कई बार घटनास्थल पर फैले बिखरे सामान, अलमारियों के टूटे तालों, और टूटे खिड़की दरवाज़ों का निरीक्षण परीक्षण किया । नगर के सभी प्रमुख समाचार पत्रों के पत्रकार पड़ोसी के ड्राइंग रूम में सोफे पर आसीन हो घटना की बखिया उधेड़ने मे लगे रहे । इस सबके साथ साथ इष्ट मित्र , रिश्तेदार और पास पडोसी भी सम्वेदना व्यक्त करने और अपना कौतुहल शांत करने के इरादे से कतार बाँधे आते रहे और चाय नाश्ते के दौर चलते रहे ।
अंततोगत्वा इतनी कवायद के बाद इंसपेक्टर ने अज्ञात लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर मुकदमा दायर कर दिया । पड़ोसी महोदय ने चैन की साँस ली । उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वे अभी बेटी के ब्याह से फारिग हुए हैं । अब पुलिस वाले चंद दिनों में चोरों को पकड़ लेंगे और चोरी गये सामान की रिकवरी हो जायेगी और सब कुछ ठीक हो जायेगा । उन्हें क्या पता था कि असली मुसीबत तो अब पलकें बिछाये उनकी प्रतीक्षा कर रही है ।
क़ई दिन की उठा पटक के बाद उन्होंने चार पाँच दिन बाद ऑफिस की ओर रुख किया । मेरे पड़ोसी एक प्राइवेट कम्पनी में प्रोडक्शन इंजीनियर हैं । इतने दिन की अनुपस्थिति के कारण कम्पनी के काम काज का जो नुक्सान हुआ उसकी वजह से उन्हें बॉस का भी कोप भाजन बनना पड़ा । खैर जैसे तैसे उन्होंने पटरी से उतरी गाड़ी को फिर से पटरी पर चढ़ाने की कोशिश की और अपने सारे दुख को भूल फिर से जीवन की आपाधापी में संघर्षरत हो गये ।
लेकिन अब एक कभी ना टूटने वाला कोर्ट कचहरी का सिलसिला शुरु हुआ । आरम्भ में हर हफ्ते और फिर महीने में दो – तीन बार केस की तारीखें पड़ने लगीं । हर बार वे ऑफिस से छुट्टी लेकर बड़े आशान्वित हो कोर्ट जाते कि इस बार कुछ हल निकल जायेगा लेकिन हर बार बाबू लोगों की जमात और वकीलों के दल बल को चाय पानी पिलाने चक्कर में और सुदूर स्थित कचहरी तक जाने के लिये गाड़ी के पेट्रोल का खर्च वहन करने में उनके चार - पाँच सौ रुपये तो ज़रूर खर्च हो जाते लेकिन केस में कोई प्रगति नहीं दिखाई देती । केस की तारीख फिर आगे बढ़ जाती और वे हताशा में डूबे घर लौट आते । यह क्रम महीनों तक चलता रहा ।
परेशान होकर पड़ोसी ने पेशी पर कोर्ट जाना बन्द कर दिया । चोरी की घटना बीते तीन साल हो चुके थे । ना तो किसी सामान की बरामदगी हुई थी ना ही कोई चोर पकड़ में आया था । चोरी के वाकये को वे एक बुरा सपना समझ कर सब भूल चुके थे और नये सिरे से जीवन समर में कमर कस कर जुट गये थे कि अचानक कोर्ट से नोटिस आ गया कि मुकदमें की पिछली तीन तारीखों पर पड़ोसी कोर्ट में नहीं पहुँचे इससे कोर्ट की अवमानना हुई है और अगर वे अगली पेशी पर भी कोर्ट नहीं पहुँचेंगे तो उनके खिलाफ सम्मन जारी कर दिया जायेगा । ज़िसने चोरी की वह आराम से मज़े उड़ा रहा था क्योंकि वह कानून की गिरफ्त से बाहर था और पुलिस तीन सालों में भी उसे पकड़ने में नाकाम रही थी । पर जिसका सब कुछ लुट चुका था वह तो एक सामाजिक ज़िम्मेदार नागरिक था वह कहाँ भागता ! इसीलिये उस पर नकेल कसना आसान था । लिहाज़ा उसे ही कानूनबाजी का मोहरा बनाया गया । अंधेर नगरी चौपट राजा ! नोटिस पढ़ कर पड़ोसी के होश उड़ गये । फिर भागे कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने । कई दिनों की कवायद के बाद अंततोगत्वा पाँच हज़ार रुपये की रिश्वत देकर उन्होने अपना पिंड छुड़ाया और अज्ञात चोरों के खिलाफ अपना मुकदमा वापिस लेकर इस जद्दोजहद को किसी तरह उन्होंने विराम दिया ।
अपने पाठकों से मैं उनकी राय जानना चाहती हूँ कि इन हालातों में क्या पडोसी को भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का दोषी माना जाना चाहिये ? अगर वे उसे ग़लत मानते हैं तो उसे मुसीबत का सामना कैसे करना चाहिये था इसके लिये उनके सुझाव आमंत्रित हैं जो निश्चित रूप से ऐसे ही दुश्चक्रों में फँसे किसी और व्यक्ति का मार्गदर्शन ज़रूर करेंगे ।

साधना वैद

2 comments :

  1. जी बिलकुल सही लिखा आपने..एक आम आदमी के साथ ही ये सब होता है..!अब देखिये ना नेताओं पर कितने बड़े बड़े केस चलते है पर वे कितने बेफिक्र है..!आम जन ही निशाने पर रहता है..चाहे कानून हो या ..कोई और...

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  2. आम आदमी के लिए यही बात है आम।
    भ्रष्ट व्यवस्था को करे होकर दूर सलाम।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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