रात ने अपनी अधमुँदी आँखे खोली हैं
सुबह ने अपने डैने पसार अँगड़ाई ली है ।
नन्हे से सूरज ने प्रकृति माँ के आँचल से मुँह घुमा
संसार को अपनी उजली आँखों से देखा है ।
दूर पर्वत शिखरों पर देवताओं की रसोई में
सुर्ख लाल अँगीठी सुलग चुकी है ।
कल कल बहते झरनों का आल्हादमय संगीत
सबको आनंद और स्फूर्ति से भर गया है ।
सुदूर गगन में पंछियों की टोली पंख पसार
अनजाने अनचीन्हे लक्ष्य की ओर उड़ चली है ।
फूलों ने अपनी पाँखुरियों से ओस के मोती ढुलका
बाल अरुण को अपना मौन अर्घ्य दिया है ।
मेरे मन में भी एक मीठी सी आशा अकुलाई है
मेरे मन में भी उजालों ने धीरे से दस्तक दी है ।
मेरे मन ने भी पंख पसार आसमान में उड़ना चाहा है
मेरे कण्ठ में भी मीठी सी तान ने आकार लिया है ।
मेरी करुणा के स्वर तुम तक पहुँच तो जायेंगे ना !
झर झर बहते अश्रुबिन्दु का अर्घ्य तुम्हें स्वीकृत तो होगा !
मैंने अंतर की ज्वाला पर जो नैवेद्य बनाया है प्रियतम
उसे ग्रहण करने को तो तुम आओगे ना !
साधना वैद
आदरणीया साधना जी बहुत ही सुन्दर कल्पना है आपकी बहुत खूब लिखा है
ReplyDeleteआशा का संचार लिए रचना अच्छी है।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
मेरी करुणा के स्वर तुम तक पहुँच तो जायेंगे ना !
ReplyDeleteझर झर बहते अश्रुबिन्दु का अर्घ्य तुम्हें स्वीकृत तो होगा !
मैंने अंतर की ज्वाला पर जो नैवेद्य बनाया है प्रियतम
उसे ग्रहण करने को तो तुम आओगे ना !
Waah Waah Waah !!!
Atisundar ! Anyatam !!
Jitne sundar bhaav utni hi prakhar abhivyakti waah !
Aanand aa gaya padhkar ...aabhaar aapka.
साधनाजी खूब अच्छा लिखा आपने॥पर क्या हमेशा इंतजार करना और उस इंतजार मेंजिन्दगी गुजार देना कोइ सार्थक हल तोनहींहैंनाओवेस्सर्
ReplyDeleteसाधनाजी खूब अच्छा लिखा आपने॥पर क्या हमेशा इंतजार करना और उस इंतजार मेंजिन्दगी गुजार देना कोइ सार्थक हल तोनहींहैंनाे्
ReplyDeleteफूलों ने अपनी पाँखुरियों से ओस के मोती ढुलका
ReplyDeleteबाल अरुण को अपना मौन अर्घ्य दिया है ।
ख़ूबसूरत अहसास, बहुत सुन्दर !
मैंने अंतर की ज्वाला पर जो नैवेद्य बनाया है प्रियतम
ReplyDeleteउसे ग्रहण करने को तो तुम आओगे ना !
बहुत सुन्दर और बेहतरीन
बहुत सुन्दर भाव सम्प्रेषण |
ReplyDeleteआशा
बेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर कोमल भाव..
ReplyDeleteसादर.
प्रकृति के खूबसूरत बिम्बो के साथ सकारात्मक संतुलन बनाती हुई रचना..बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteकल्पना के रंग में डूबी पोस्ट
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteरहस्यवाद की सारी मधुरिमा कविता में उतर आई है .
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