चंचल चुलबुली हवा ने
जाने बादल से क्या कहा
रुष्ट बादल ज़ोर से गरजा
उसकी आँखों में क्रोध की
ज्वाला रह रह कर कौंधने लगी ।
डरी सहमी वर्षा सिहर कर
काँपने लगी और अनचाहे ही
उसके नेत्रों से गंगा जमुना की
अविरल धारा बह चली ।
नीचे धरती माँ से
उसका दुख देखा न गया ,
पिता गिरिराज हिमालय भी
उसकी पीड़ा से अछूते ना रह सके ।
धरती माँ ने बेटी वर्षा के सारे आँसुओं को
अपने आँचल में समेट लिया
और उन आँसुओं से सिंचित होकर
हरी भरी दानेदार फसल लहलहा उठी ।
पिता हिमालय के शीतल स्पर्श ने
वर्षा के दुखों का दमन कर दिया
और उसके आँसू गिरिराज के वक्ष पर
हिमशिला की भाँति जम गये
और कालांतर में गंगा के प्रवाह में मिल
जन मानस के पापों को धोकर
उन्हें पवित्र करते रहे।
साधना वैद
बर्षा से गंगा तक की यह काव्यात्मक यात्रा अच्छी लगी।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
very nice poem
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