कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
घटाटोप अन्धकार में
आसमान की ऊँचाई से
मुट्ठी भर रोशनी लिये
किसी धुँधले से तारे की
एक दुर्बल सी किरण
धरा के किसी कोने में टिमटिमाई है !
कहीं यह तुम्हारी आने की आहट तो नहीं !
गहनतम नीरव गह्वर में
सुदूर ठिकानों से
सदियों से स्थिर
सन्नाटे को चीरती
एक क्षीण सी आवाज़ की
प्रतिध्वनि सुनाई दी है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
सूर्य के भीषण ताप से
भभकती , दहकती
चटकती , दरकती ,
मरुभूमि को सावन की
पहली फुहार की एक
नन्हीं सी बूँद धीरे से छू गयी है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
पतझड़ के शाश्वत मौसम में
जब सभी वृक्ष अपनी
नितांत अलंकरणविहीन
निरावृत बाहों को फैला
अपनी दुर्दशा के अंत के लिये
प्रार्थना सी करते प्रतीत होते हैं
मेरे मन के उपवन में एक
कोमल सी कोंपल ने जन्म लिया है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
साधना वैद
मेरे मन के उपवन में एक
ReplyDeleteकोमल सी कोंपल ने जन्म लिया है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
यह कोमल अहसास और किसी के आने कि आस ही जिलाए रखती है जिजीविषा....बहुत ही ख़ूबसूरत रचना
yah aahat vatvriksh tak aaye , intzaar hai... achhi rachna kisi nadi ki manind saagar se mil jaye
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना |बधाई
ReplyDeleteआशा
पतझड़ के शाश्वत मौसम में
ReplyDeleteजब सभी वृक्ष अपनी
नितांत अलंकरणविहीन
निरावृत बाहों को फैला
अपनी दुर्दशा के अंत के लिये
प्रार्थना सी करते प्रतीत होते हैं
मेरे मन के उपवन में एक
कोमल सी कोंपल ने जन्म लिया है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
बहुत गहन और सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्त किया है इस आहट को ...सुन्दर ...
वाह जी बहुत सुंदर आहट ओर उस पर यह सुंदर अहसास. धन्यवाद
ReplyDeleteमेरे मन के उपवन में एक
ReplyDeleteकोमल सी कोंपल ने जन्म लिया है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं
komal si kavita bahut achchi lagi.
ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता.अहसास ही तो कविता को जीवित करता है
ReplyDeleteसूर्य के भीषण ताप से
ReplyDeleteभभकती , दहकती
चटकती , दरकती ,
मरुभूमि को सावन की
पहली फुहार की एक
नन्हीं सी बूँद धीरे से छू गयी है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं ...
वाह ... उनके आने से पहले उनकी आहट हर शे में नज़र आती है ... बहुत ही मधुर स्मृतियों से ले जाती है ये रचना ..
कोमल सी कोपल की तरह ही कोमल भावों वाली इस सुदर रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteपतझड़ के शाश्वत मौसम में
ReplyDeleteजब सभी वृक्ष अपनी
नितांत अलंकरणविहीन
निरावृत बाहों को फैला
अपनी दुर्दशा के अंत के लिये
प्रार्थना सी करते प्रतीत होते हैं
मेरे मन के उपवन में एक
कोमल सी कोंपल ने जन्म लिया है !
कहीं यह तुम्हारे आने की आहट तो नहीं !
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना -
बधाई