वह बैठा है एक आलीशान होटल के बाहर
पेड़ के ऊँचे गहरे कोटर में .
सजग, सतर्क, खामोश, विरक्त
और देख रहा है साँस रोके
बेरहम दुनिया को पूर्णत: निरावृत
बिना किसी मुखौटे के
उसके अपने असली रूप रंग में !
जहाँ होटल के अंदर कुछ लोग
तेज संगीत की ताल पर
जाम पर जाम चढ़ा तीव्र गति से
डांस फ्लोर पर थिरक रहे हैं,
और होटल के बाहर दरबान मुस्तैदी से
उनकी रखवाली कर रहे हैं !
वहीं कुछ लोग दिन भर की बदन तोड़
मेहनत मजदूरी के बाद फुटपाथ पर
ज़रा सा सुस्ताने के लिये बैठ गये हैं
तो सिपाही उन्हें दुत्कार कर खदेड़ रहे हैं !
जहाँ होटल के अंदर तरह-तरह के
पकवानों से सजी मेजें दूर-दूर तक फ़ैली हैं
और जूठन से भरी भराई
अनगिनत प्लेटें बास्केट में भरी पड़ी हैं,
वहीं होटल के बाहर
सूखे होंठ,खाली पेट और निस्तेज आँखों वाले
चंद बच्चों का हुजूम लालायित नज़रों से
जूठन से भरी इन प्लेटों को
हसरत से देख रहा है !
पार्टी समाप्त हुई है
और जगर मगर कीमती वस्त्रों में सजे लोग
हाथों में हाथ डाले डगमगाते कदमों से
चमचमाती शानदार कारों में बैठ जा रहे हैं
और अधनंगे भूखे बच्चों का झुण्ड
चंद सिक्कों की आस में
हाथ फैलाए कारों के पीछे
एक निष्फल निरर्थक दौड़ लगा रहा है
और दुत्कारा जा रहा है उन तथाकथित
अमीर लोगों के द्वारा जिन्हें शायद
इस समाज का रहनुमां समझा जाता है !
वह यह सब देखता है हर रात !
यह विषमता, यह वर्ग भेद
यह विकृति, यह विरूपता
और उसका मन भर उठता है एक
गहन अकथनीय पीड़ा और वितृष्णा से !
ऐसी दुनिया उसे नहीं भाती
और पौ फटते ही वह अपनी आँखें मूँद
घुस जाता है अपने कोटर में
दिन भर के लिये !
शायद आने वाली अगली रात के लिये
जब उसे पुन: चाहे अनचाहे
यही सब कुछ फिर देखना पड़ेगा
क्योंकि वह एक उल्लू है और
कदाचित इसीलिये पश्चिमी मान्यता के अनुसार
वह मूर्खता का नहीं वरन्
विद्वता का प्रतीक है !
साधना वैद
पेड़ के ऊँचे गहरे कोटर में .
सजग, सतर्क, खामोश, विरक्त
और देख रहा है साँस रोके
बेरहम दुनिया को पूर्णत: निरावृत
बिना किसी मुखौटे के
उसके अपने असली रूप रंग में !
जहाँ होटल के अंदर कुछ लोग
तेज संगीत की ताल पर
जाम पर जाम चढ़ा तीव्र गति से
डांस फ्लोर पर थिरक रहे हैं,
और होटल के बाहर दरबान मुस्तैदी से
उनकी रखवाली कर रहे हैं !
वहीं कुछ लोग दिन भर की बदन तोड़
मेहनत मजदूरी के बाद फुटपाथ पर
ज़रा सा सुस्ताने के लिये बैठ गये हैं
तो सिपाही उन्हें दुत्कार कर खदेड़ रहे हैं !
जहाँ होटल के अंदर तरह-तरह के
पकवानों से सजी मेजें दूर-दूर तक फ़ैली हैं
और जूठन से भरी भराई
अनगिनत प्लेटें बास्केट में भरी पड़ी हैं,
वहीं होटल के बाहर
सूखे होंठ,खाली पेट और निस्तेज आँखों वाले
चंद बच्चों का हुजूम लालायित नज़रों से
जूठन से भरी इन प्लेटों को
हसरत से देख रहा है !
पार्टी समाप्त हुई है
और जगर मगर कीमती वस्त्रों में सजे लोग
हाथों में हाथ डाले डगमगाते कदमों से
चमचमाती शानदार कारों में बैठ जा रहे हैं
और अधनंगे भूखे बच्चों का झुण्ड
चंद सिक्कों की आस में
हाथ फैलाए कारों के पीछे
एक निष्फल निरर्थक दौड़ लगा रहा है
और दुत्कारा जा रहा है उन तथाकथित
अमीर लोगों के द्वारा जिन्हें शायद
इस समाज का रहनुमां समझा जाता है !
वह यह सब देखता है हर रात !
यह विषमता, यह वर्ग भेद
यह विकृति, यह विरूपता
और उसका मन भर उठता है एक
गहन अकथनीय पीड़ा और वितृष्णा से !
ऐसी दुनिया उसे नहीं भाती
और पौ फटते ही वह अपनी आँखें मूँद
घुस जाता है अपने कोटर में
दिन भर के लिये !
शायद आने वाली अगली रात के लिये
जब उसे पुन: चाहे अनचाहे
यही सब कुछ फिर देखना पड़ेगा
क्योंकि वह एक उल्लू है और
कदाचित इसीलिये पश्चिमी मान्यता के अनुसार
वह मूर्खता का नहीं वरन्
विद्वता का प्रतीक है !
साधना वैद
अप्रत्यक्ष रूप से समाज का चित्रण बहुत सुन्दर किया है |आम मनुष्य विसंगतियों में जी रहा है पर मजबूर है |किन्हीं कारणों से चुप रह जाता है |अति सुन्दर कविता के लिए बधाई |
ReplyDeleteआशा
do viprit paristhitiyaan... aur yah hamesha rahengi
ReplyDeleteविद्वता का प्रतीक ... इंसान तो वो भी नहीं बन पाया ..नहीं दिखता उसको कुछ भी ...स्वार्थ भरा पड़ा है उसकी आँखों में ...विपरीत परिस्थितियों का अच्छा वर्णन ... संवेदनशील मन से लिखी बेहतरीन रचना ..
ReplyDeleteकदाचित इसीलिये पश्चिमी मान्यता के अनुसार
ReplyDeleteवह मूर्खता का नहीं वरन्
विद्वता का प्रतीक है
bahut achchi lagi aapki yah sochbhari kavita.
सुन्दर कविता के लिए बधाई |
ReplyDeleteजहाँ न पहुंचे रवि वहाँ पहुंचे कवि आपकी रचनाये
ReplyDeleteइस उक्ति को बहुत चरितार्थ करती हैं बधाई |
सही है जी..
ReplyDeleteजूठा तो हम कुत्तों को दाल देते हैं.. और वही जूठा गरीबों को नहीं देंगे..
सब माया है.. सब फंसे हुए हैं.. और जन्मान्तर तक फंसे रहेंगे..
अच्छी कविता.. अच्छी सोच को दर्शाती हुई..
बहुत सुंदर तरह से मन के भाव प्रकट किये हैं ..उत्तम रचना है ..
ReplyDeleteक्योंकि वह एक उल्लू है और
ReplyDeleteकदाचित इसीलिये पश्चिमी मान्यता के अनुसार
वह मूर्खता का नहीं वरन्
विद्वता का प्रतीक है !
बहुत सटीक।
सादर
विपरीत परिस्थितियों का अच्छा वर्णन . मनोभाव की सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteविचारोत्तेजक सार्थक चिंतन...
ReplyDeleteसादर...