इन्द्रधनुषी आसमानों से परे,
प्रणय की मदमस्त तानों से परे,
स्वप्न सुख के बंधनों से मुक्त हो,
कल्पना की वंचनाओं से परे,
उड़ चला मन राह अपनी खोजने,
तुम न अब आवाज़ देकर रोकना !
चन्द्रमा की ज्योत्सना का क्या करूँ,
कोकिला के मधुर स्वर को क्यों सुनूँ,
चाँदनी का रूप बहलाता नहीं,
मलय का शीतल परस भी क्यों चुनूँ ,
उड़ चला मन आग प्राणों में लिये,
तुम न पीछे से उसे अब टोकना !
आँधियों का वेग उसको चाहिये,
ज्वार का आवेग उसको चाहिये,
ध्वंस कर दे जो सभी झूठे भरम,
बिजलियों की कौंध उसको चाहिये,
उड़ चला मन दग्ध अंतर को लिये,
तुम न उसकी राह को अब रोकना !
निज ह्रदय की विकलता को हार कर,
विघ्न बाधाओं के सागर पार कर,
भाग्य अपना बंद मुट्ठी में लिये,
चला जो अविरल नुकीली धार पर,
उड़ चला मन ठौर पाने के लिये,
तुम न उस परवाज़ को अब टोकना !
साधना वैद
निज ह्रदय की विकलता को हार कर,
ReplyDeleteविघ्न बाधाओं के सागर पार कर,
भाग्य अपना बंद मुट्ठी में लिये,
चला जो अविरल नुकीली धार पर,
उड़ चला मन ठौर पाने के लिये,
तुम न उस परवाज़ को अब टोकना !
बहुत सुन्दर मन की उडान..कविता में शब्दों और भावों का प्रवाह अपने साथ बहा लेजाता है..बहुत सुन्दर.आभार
इन्द्रधनुषी आसमानों से परे,
ReplyDeleteप्रणय की मदमस्त तानों से परे,
स्वप्न सुख के बंधनों से मुक्त हो,
कल्पना की वंचनाओं से परे,
उड़ चला मन राह अपनी खोजने,
तुम न अब आवाज़ देकर रोकना !
वाह यह मन कभी किसी के रोके रुका हे क्या, चंचल हे, या पागल पता नही, बहुत सुंदर रचना धन्यवाद
"उड़ चला मन ----परवाज को अब टोकना "
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति |बधाई |
आशा
wah.behad sunder shabdon ka chyan kiya hai aapne.bahut achchi kavita.
ReplyDeleteशब्द सामर्थ्य, भाव-सम्प्रेषण, संगीतात्मकता, लयात्मकता की दृष्टि से कविता अत्युत्तम है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना धन्यवाद
ReplyDeleteसाधना जी ,
ReplyDeleteआपकी इस रचना क साथ मेरा मन भी ऐसे ही उड़ रहा है ...सुन्दर शब्दों स संजोयी यह रचना बहुत लय बद्ध है ...मन क हर आवेग को समेटे हुए सूक्ष्मता से मन कि बात करती सी प्रतीत हो रही है ...बहुत सुन्दर
निज ह्रदय की विकलता को हार कर,
ReplyDeleteविघ्न बाधाओं के सागर पार कर,
भाग्य अपना बंद मुट्ठी में लिये,
चला जो अविरल नुकीली धार पर,
उड़ चला मन ठौर पाने के लिये,
तुम न उस परवाज़ को अब टोकना !
बहुत ही सुन्दर सार्थक सन्देश छुपा है इन पाँक्तिओं मे। बधाई सुन्दर रचना के लिये।
आँधियों का वेग उसको चाहिये,
ReplyDeleteज्वार का आवेग उसको चाहिये,
ध्वंस कर दे जो सभी झूठे भरम,
बिजलियों की कौंध उसको चाहिये,
उड़ चला मन दग्ध अंतर को लिये,
तुम न उसकी राह को अब रोकना
हर पंक्ति अर्थपूर्ण ......
प्रभावी भावभिव्यक्ति.....
सुन्दर रचना !
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों से सजी ..
ReplyDeleteमन के आवेगी भावों से भरी...
सार्थक सन्देश देती...................सुन्दर रचना के लिए हार्दिक आभार !
चला जो अविरल नुकीली धार पर,
ReplyDeleteउड़ चला मन ठौर पाने के लिये,
तुम न उस परवाज़ को अब टोकना !
बहुत सार्थक सुंदर कथन और उतनी ही सुंदर फोटो -
कुछ देर को मन सच में उड़ चला -
बधाई एवं शुभकामनायें
आँधियों का वेग उसको चाहिये,
ReplyDeleteज्वार का आवेग उसको चाहिये,
ध्वंस कर दे जो सभी झूठे भरम,
बिजलियों की कौंध उसको चाहिये,
उड़ चला मन दग्ध अंतर को लिये,
तुम न उसकी राह को अब रोकना !
साधना जी, आपकी लेखनी में गहन भावों का प्रवाह विचारों को उद्वेलित करता है !
साधुवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
शब्दों और भावनाओं को बहुत खूबसूरती से पिरोया है सुन्दर प्रेममयी कोमल भावों और शब्दों से सजी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
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