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Friday, May 27, 2011

असमंजस

तुम तो मेरे नयनों के हर आँसू में समाये हो

जिन्हें मैं पलकों के कपाटों के पीछे

बड़े जतन से छिपा कर रखती हूँ

कि कहीं तुम उन आँसुओं की धार के साथ

बह कर बाहर ना चले जाओ !

तुम तो मेरे हृदय से निसृत

हर आह में बसते हो जिसे मैं

दांतों तले अपने अधरों को कस कर

दबा कर बाहर निकलने से रोक लेती हूँ

कि कहीं तुम भी उस आह के साथ

हवा में विलीन ना हो जाओ !

तुम तो अंगूठे से लिपटे आँचल की

हर सिलवट में छिपे हो

जिसे मैं कस कर मुठ्ठी में भींच लेती हूँ

कि कही तुम इस नेह्बंध से

मुक्त होकर अन्यत्र ना चले जाओ !

तुम तो मेरी डायरी में लिखी

नज़्म के हर लफ्ज़ में निहित हो

जिसे मैं बार-बार सिर्फ इसीलिये

पढ़ लेती हूँ कि जितनी बार भी

मैं उसे पढूँ

उतनी बार तुम्हें देख सकूँ !

तुम तो मेरे अंतस में

एक दिव्य उजास की तरह विस्तीर्ण हो

मेरे मन को आलोकित करते हो

और उस प्रकाश के दर्पण में ही

मैं अपने अस्तित्व को पहचान पाती हूँ !

लेकिन मैं जहाँ हूँ

वह जगह मुझे साफ़

दिखाई क्यों नहीं देती !

मुझे पहचान में क्यों नहीं आती !

एक गहन वेदना

एक घनीभूत पीड़ा

और एक अंतहीन असमंजस के

दोराहे पर मैं खुद को पाती हूँ

जहाँ से आगे बढ़ने के लिये हर राह

बंद नज़र आती है !

साधना वैद

14 comments :

  1. तुम तो मेरे अंतस में

    एक दिव्य उजास की तरह विस्तीर्ण हो

    प्रेम की पराकाष्ठा व्यक्त करती पंक्तियाँ ..और नारी मन की वेदना जहाँ वो खुद के वजूद की तलाश करती है और स्वयं को ही नहीं पहचान पाती ...

    बहुत अच्छी अभिव्यक्ति

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  2. स्मिताMay 27, 2011 at 10:19 PM

    कोमल मन के भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति |

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  3. bahut hi sunder ,prem ki marmik abhibyakti

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  4. तुम तो मेरी डायरी में लिखी नज़्म के हर लफ्ज़ में निहित हो जिसे मैं बार-बार सिर्फ इसीलिये पढ़ लेती हूँ कि जितनी बार भीमैं उसे पढूँ उतनी बार तुम्हें देख सकूँ ! तुम तो मेरे अंतस में एक दिव्य उजास की तरह विस्तीर्ण हो मेरे मन को आलोकित करते हो और उस प्रकाश के दर्पण में ही मैं अपने अस्तित्व को पहचान पाती हूँ !

    प्रेम में लिपटी हुई ...खुद को तलाशती हुई ... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति साधना जी |

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  5. "तुम तो मेरे अंतस में
    एक दिव्य उजास की तरह विस्तीर्ण हो
    मेरे मन को आलोकित करते हो
    और उस प्रकाश के दर्पण में ही
    मैं अपने अस्तित्व को पहचान पाती हूँ "

    बहुत सुन्दरता से भावों को पिरोया है आपने...

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  6. बस इतना ही कहूँगा


    ये आँसू अब कभी नहीं बहते हैं,
    मन की पीड़ा सबसे नहीं कहतें हैं,.
    अगली बार जब तुम मिले,
    तो हर लम्हा आँखों मे समेट लेंगे
    इसी प्रत्याशा में पलकों पे रुके रहते हैं ...

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  7. साधना जी इस अप्रतिम रचना के लिए बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  8. सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  9. बहुत भाव पूर्ण अभिव्यक्ति |गहन गंभीर शब्द संयोजन |बहुत खूब
    आशा

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  10. भावों को गहराई तक अपने अन्दर समेटे सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  11. प्रेम में कोई रोक नहीं होती है और आशा है कि आपको भी अपना रास्ता ज़रूर नज़र आएगा.. सुन्दर, गहन रचना.. बधाई.

    आभार
    सुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..

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  12. बहुत अच्छी ओर सुंदर रचना धन्यवाद

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  13. तुम तो मेरे अंतस में
    एक दिव्य उजास की तरह विस्तीर्ण हो
    मेरे मन को आलोकित करते हो
    और उस प्रकाश के दर्पण में ही
    मैं अपने अस्तित्व को पहचान पाती हूँ

    साधना जी , बेहतरीन कविता, पढने से कैसे छूट गयी , छूट जाती तो मलाल रह जाता , बधाई

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