वल्लाह नये दर्द रुलाने के वास्ते,
यादें पुरानी सिर्फ लुभाने के वास्ते.
कुछ तल्खियाँ भी बनके रहीं बोझ हमेशा,
कुछ बात के नश्तर हैं चुभाने के वास्ते.
रहमत से तेरी हम ही हैं महरूम, मगर क्यों ?
दर तो खुला था तेरा ज़माने के वास्ते.
ज़ख्मों की दिल में एक नुमाइश लगी रही,
ऐ मेरे ख़ुदा तुझको दिखाने के वास्ते.
सोचा था तुझ से अब न शिकायत करेंगे हम,
थपकी भी दी थी मन को सुलाने के वास्ते.
तेरा है इंतज़ार मुझे अब भी 'साधना'
हैं अश्क रवां तुझको बुलाने के वास्ते.
साधना वैद
साधना वैद
"जख्मों की दिल में एक नुमाइश लगी रही ----"
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना |
बधाई
आशा
सोचा था तुझ से अब न शिकायत करेंगे हम,
ReplyDeleteथपकी भी दी थी मन को सुलाने के वास्ते.
बेहतरीन गजल। बधाई।
अनेक शुभकामनाएं !
बेहतरीन कविता संसार, अच्छे शब्द चयन बधाई
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 24 - 05 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच
भई वाह ! कमाल कर दिया इतनी अच्छी शायरी ।
ReplyDeleteसाधना वैद जी, आपकी मेहनत रंग ला रही है ।
Fantastic.
शुक्रिया ।
दिल की दिल को सुनाने के वास्ते
आया है माशूक़ मनाने के वास्ते
ख़ामोशी तबस्सुम कलाम और नख़रे
बहुत हैं दिल लुभाने के रास्ते
शबे आख़िर में चाँद अपना जगाइये
आसमाँ पे दिल के चढ़ाने के वास्ते
अश्क न बहा तू फ़रियाद न कर
इंतज़ार कैसा किसी बेवफ़ा के वास्ते
हमदर्द भी मिलेंगे हर मोड़ पर
हौसला चाहिए हाथ बढ़ाने के वास्ते
शबो रोज़ यूँ गुज़ारता है 'अनवर'
लिखता है कलिमा पढ़ाने के वास्ते
.
.
.
क्यों जी , यह कैसी लगी ?
आज तीनों की कविताएँ एक साथ चर्चा मंच पर है |
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा |तुम्हारी उर्दू इतनी अच्छी है यह तो पता ही नहीं था |
क्या क्या गुण छिपे हैं और |अच्छी रचना के लिए बधाई
आशा
Saadhna ji aapki ghazal padh kar maja aa gaya.har ek sher laajabab hai.
ReplyDeleteसोचा था तुझ से अब न शिकायत करेंगे हम,
ReplyDeleteथपकी भी दी थी मन को सुलाने के वास्ते.
भावमय करते शब्दों के साथ यह पंक्ति लाजवाब ... ।
बढ़िया ग़ज़ल.बधाई.
ReplyDeleteतेरा है इंतज़ार मुझे अब भी 'साधना'
ReplyDeleteहैं अश्क रवां तुझको बुलाने के वास्ते
जितनी तारीफ की जाये कम है ...
बहुत ही सुंदर शायरी ...
कई बार पढकर भी मन नहीं भरा ...
badhai Sadhna ji ...
बहुत ही बेहतरीन शब्द चयन
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अच्छी रचना के लिए बधाई
ReplyDeletehttp://sanjaybhaskar.blogspot.com/
क्या बात क्या बात क्या बात ....बेहतरीन शायरी.
ReplyDeleteसाधना जी ,
ReplyDeleteआज तो एक दम झक्कास गज़ल लायी हैं ... एक एक शेर मन में उतरता चला गया ...
कल चर्चा मंच की तैयारी के चक्कर में टिप्पणी नहीं दे पाई थी ..सोचा आराम से कुछ लिखूंगी ...
आपकी ही बातों को कुछ इस तरह लिखा है ...पढ़ कर लिखने का कीड़ा कुलबुलाया था :):)
यादों के साये में खो कर हम
बुनते हैं नए दर्द अश्कों के लिए हम
बातों के नश्तर से हो कर लहुलुहान
तल्खियों का बोझ भी ढोते हैं हम
देखा जो दर खुला ज़माने के लिए
अपने लिए भी आस लगा बैठे थे हम
खुदा को फुरसत नहीं थी ज़ख्म देखने की
उसकी एक झलक को तरसते रहे हम
शिकायत से तो उग आते हैं मन में जंगल
एक एक कांटे को बस बीनते रहे हम
अश्कों की जुबां कभी तुझ तक पहुंचे
इंतज़ार की बारिश में बस भीगते रहे हम
ज़ख्मों की दिल में एक नुमाइश लगी रही,
ReplyDeleteऐ मेरे ख़ुदा तुझको दिखाने के वास्ते.
वाह वाह ...कमाल का लिखा है...
सोचा था तुझ से अब न शिकायत करेंगे हम,
ReplyDeleteथपकी भी दी थी मन को सुलाने के वास्ते ...
बहुत खूबसूरत ख्याल है ...लाजवाब लिखा है ...
साधनाजी...
ReplyDeleteतारीफ के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास..
बस खामोशी ही काफी है....
उम्दा...
बेहतरीन...
खुशनुमा...
बस--
और क्या ??
वल्लाह नये दर्द रुलाने के वास्ते,
ReplyDeleteयादें पुरानी सिर्फ लुभाने के वास्ते.
सुंदर रचना. सुंदर शब्द चयन. बेहतरीन भाव.
शुभकामनाएँ
सुंदर ग़ज़ल ! मन को छू गयी !
ReplyDeleteकुछ और ग़ज़लें पोस्ट करें !
सुंदर ग़ज़ल ! मन को छू गयी !
ReplyDeleteकुछ और ग़ज़लें पोस्ट करें !
अच्छी रचना के लिए बधाई
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