देखो
अप्रतिम सौंदर्य के साथ
सम्पूर्ण क्षितिज पर
अपनी सतरंगी छटा बिखेरता
इन्द्रधनुष निकल आया है !
भुवन भास्कर के
उज्जवल मुख पर
आच्छादित बादलों के
अवगुंठन को
पल भर में उड़ा कर
सूर्य नारायण की
प्रखर उत्तप्त रश्मियों ने
वातावरण में व्याप्त
वाष्प कणों को
उद्दीप्त कर ऐसे
अनूठे इन्द्रधनुष का
निर्माण कर दिया है कि
धरा से अम्बर तक
समूचा विस्तार इन्द्रधनुष के
अलौकिक रंगों से रंग गया है !
दिव्य सौंदर्य से प्रदीप्त
नवोढा सृष्टि सुन्दरी
अपने प्रशस्त भाल पर
सलोने सूर्य की
स्वर्णिम टिकुली लगा ,
सतरंगी इन्द्रधनुष की
झिलमिलाती चूनर अपने
आरक्त आनन पर ओढ़
इठलाती इतराती
सबको विस्मय विमुग्ध
कर रही है और
सुदूर देवलोक में
सृष्टि सुन्दरी के इस
पल पल बदलते दिव्य
सौंदर्य पर आसक्त हो
कामदेव ने अपने धनुष की
प्रत्यंचा पर फूलों के
बाणों को साध लिया है !
साधना वैद
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