दिल्ली के चिड़ियाघर में दो दिन पूर्व सफ़ेद शेर ने एक युवक को मार दिया ! आजकल
मीडिया में और कई घरों में भी सारी कवायद इस बात पर हो रही है कि इस अत्यंत
लोमहर्षक दुर्घटना के लिये किसे ज़िम्मेदार माना जाए, किसकी गलती थी और क्या इस दुर्घटना
को घटने से रोका जा सकता था ?
नि:संदेह रूप से गलती शेर का शिकार बने उस युवक की थी यह तो सर्वमान्य है
ही लेकिन कहीं न कहीं ज़ू की सुरक्षा व्यवस्था भी ढीली व अपर्याप्त थी इससे भी
इंकार नहीं किया जा सकता ! यह देखा गया है कि स्थान-स्थान पर लगे चेतावनी के साइन
बोर्ड्स को पढ़ कर भी अनदेखा करने की प्रवृत्ति लोगों ने बना ली है ! उन्हें ध्यान
से पढ़ कर उनका पालन करने की जगह लोग उनका मखौल बनाते हुए पाए जाते हैं ! आवश्यक्ता
पड़ने पर कठिन परिस्थिति का साहस के साथ सामना करना बहादुरी है लेकिन बेवजह
दुस्साहस दिखा कर मुसीबतों को न्यौता देना महामूर्खता है ! सबसे पहली बात तो यह कि
उस युवक को बाउंड्री वाल पर चढ़ना ही नहीं चाहिए था ! जब प्राणियों में सबसे
बुद्धिमान माना जाने वाला इंसान इतनी बड़ी गलती कर सकता है तो शेर तो एक जंगली
जानवर है और हिंसक भी है तो उससे किसी दया माया की उम्मीद कैसे की जा सकती है ! असावधानी
से जब वह युवक शेर के बाड़े में गिर गया तो आस पास खड़ी दर्शकों की भीड़ ने उसे बचाने के
लिये अज्ञानतावश जो प्रयत्न किये शायद वही उसकी मौत के लिये सबसे बड़ी वजह बन गये !
शेर को युवक से दूर भगाने के लिये कोई उस पर पत्थर फेंक रहा था कोई चप्पल तो कोई
ज़ोर-ज़ोर से शोर मचा रहा था ! इन सारी गतिविधियों से पहले शेर शांत था और दूर से
अनायास ही अपने बाड़े में आ जाने वाले इस नवागंतुक को कौतुहल के साथ देख रहा था !
उसकी मुद्रा कतई आक्रामक नहीं थी ! लेकिन लोगों की इन नादानियों ने शेर के क्रोध को
भड़का दिया ! कदाचित उसे अपनी ही सुरक्षा की चिंता सताने लगी ! पत्थरों की चोट ने
उसे हिंसक बना दिया और शायद इसीलिये वह युवक को गर्दन से घसीट कर बाड़े में अंदर
दूर ले गया ! यदि भीड़ ने इतना कोलाहल ना मचाया होता तो हो सकता था कि कुछ देर बाद
कौतुहल शांत हो जाने पर वह शेर स्वयं उससे दूर हट जाता और युवक को सुरक्षित बाहर
निकालने की संभावना बढ़ जाती ! लेकिन भीड़ ने जो कुछ किया उससे युवक की प्राण रक्षा तो न हो सकी उलटे उसकी जान पर ही बन आई ! फिर भी व्यग्रता और घबराहट में आस पास जुटे लोगों के हर प्रयत्न में केवल और केवल उस युवक को शेर के मुंह से बचाने की ही भावना थी और जो कुछ उन्होंने किया वह युवक को बचाने के इरादे
से ही किया था यह भी सुनिश्चित है इसलिये उनकी सदाशयता को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए !
ज़ू प्रशासन से भी चूक तो हुई है ! इतने खतरनाक जानवरों के रिहाइशी स्थानों
के पास भीड़ को नियंत्रित करने के लिये कोई गार्ड क्यों नहीं था ? इसी मार्च के
महीने में हम लोग भी दिल्ली का ज़ू देखने के लिये गये थे ! सारे परिसर में गार्ड्स
की संख्या बहुत कम थी ! दर्शकों में हर तरह के लोग होते हैं ! कुछ शरारती होते हैं
तो कुछ शेखीखोर होते हैं कुछ दुस्साहसी होते हैं तो कुछ अशिक्षित ! ऐसे लोगों के
लिये चेतावनी वाले बोर्ड्स कोई अहमियत नहीं रखते ! ऐसे लोगों से निबटने के लिये उन
पर सख्ती से नज़र रखने की ज़रूरत है ! ज़ू प्रशासन को अपने यहाँ समुचित रखरखाव के
लिये गार्ड्स की संख्या में वृद्धि करनी चाहिए ! हिंसक जानवरों के पास अनिवार्य
रूप से दो गार्ड्स पूरे समय ड्यूटी पर रहने चाहिए ! अगर सफ़ेद शेर के बाड़े के पास
कोई गार्ड होता तो युवक फेंसिंग पर चढ़ ही नहीं पाता ! भारत में बेरोज़गारी की
समस्या विकट है ! इस तरह कुछ नौजवानों को काम भी मिल जाएगा और लोगों का जीवन भी
सुरक्षित हो जाएगा !
इसके अलावा सुरक्षा प्रबंधन की भी कमी है ! युवक के शेर के बाड़े में गिर
जाने के बहुत देर बाद सम्बंधित लोग दुर्घटनास्थल पर पहुँचे ! जब तक ज़िम्मेदार
लोगों तक खबर पहुँची शेर अपना काम कर चुका था ! ज़ू परिसर में स्थान का अभाव नहीं
है ! हिंसक जानवरों के बाड़े के पास ही ऐसे केबिन्स का निर्माण किया जाना चाहिए
जहाँ सारी सुरक्षा व्यवस्थाएं चाक चौबंद रखी जा सकें ! ताकि आड़े वक्त में अविलम्ब
सहायता उपलब्ध हो सके ! यदि उस दिन भी गार्ड आसपास होते और हवाई फायर आदि करके शेर
को दूर भगाने में कामयाब हो जाते तो एक जीवन बचा लिया गया होता !
दर्शकों की भीड़ के साथ कोई गाइड अनिवार्य रूप से होना ही चाहिए जो निरंतर
अधिकारियों के साथ संपर्क में रहे और इस तरह की घटनाओं से निबटने के लिये समुचित
रूप से प्रशिक्षित भी हो ! जनता गाइड इसलिए नहीं करती क्योंकि ये फीस बहुत माँगते
हैं ! ज़ू प्रशासन को जनता के लिये यह व्यवस्था निशुल्क उपलब्ध करानी चाहिए ! इससे
अनुशासन भी बना रहेगा और जानवर भी सुरक्षित रहेंगे ! अक्सर बच्चे और कई नादान दर्शक
सोये हुए जानवरों को जगाने के लिये उन्हें बहुत परेशान करते हैं और कंकड पत्थरों
से उन्हें मारते भी हैं ! उन्हें ऐसी वस्तुएँ खाने के लिये देते हैं जो उनके प्राण
तक संकट में डाल सकती हैं !
मेरे सुझाव सम्बंधित लोगों को मुश्किल या अव्यावहारिक लग सकते हैं लेकिन
नामुमकिन कतई नहीं हैं ! यदि इन पर विचार किया जाए तो व्यवस्था को काफी हद तक
सुधारा जा सकता है यह निश्चित है ! आशा है मुझे आप लोगों का समर्थन भी अवश्य
मिलेगा ! साभार !
साधना वैद
दि
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