साँझ की बेला
शांत स्थिर झील का जल
धरा पर उतरने को आतुर
तिमिर के धुंधले से साये
आसमान में छाईं
अस्तप्राय सूर्य की सुनहरी रश्मियाँ
झील के दर्पण में प्रतिबिंबित
रक्तिम आसमान का मनोहारी दृश्य
और विस्मत विमुग्ध एक मैं
शायर की नज़्म में
शायद यही
सुरमई उजाला
और चम्पई अँधेरा है !
साधना वैद
No comments :
Post a Comment