पिता
एक ऐसा जुझारू
व्यक्तित्व
जिसने चुनौतियों से
कभी हार न मानी
हर मुश्किल घड़ी में
वह और मज़बूत होकर
निखरा
हर विपदा को अपने ध्रुव
इरादों से
जिसने चूर चूर करने
की ठानी !
पिता
एक ऐसा सहृदय इंसान
जिसने अपनी कोमल
भावनाओं को
हमेशा सीप की तरह
एक कठोर आवरण में
छिपा कर रखा
जो अपने बच्चों के
लिये
कभी गुरू बना तो
कभी बंधु और कभी सखा
!
पिता
एक ऐसा सम्पूर्ण
व्यक्तित्व
जिसने अकेले ही अपने
बलिष्ठ कन्धों पर
गृहस्थी का जुआ रखा
अपनी मेहनत, अपनी लगन
और अपने समर्पण से
हर अनुकूल और
प्रतिकूल मौसम में
इतनी फसल उगाई कि
अपने घर परिवार, नाते
रिश्तेदार के अलावा
किसी भी अतिथि किसी भी
साधू को
कभी भूखा न रखा !
पिता
एक ऐसा ज्योतिपुन्ज
जिसका प्रकाश
चौंधियाता नहीं
राह दिखाता है,
एक ऐसा शक्तिपुंज
जिसकी ताकत आतंकित
नहीं करती
हमारी क्षमता को
बढ़ाती है,
एक ऐसा प्रेमपुन्ज
जिसका प्यार हमारे
व्यक्तित्व को
दबाता नहीं
विकसित करता है
निखारता है, उभारता
है,
हमें सम्पूर्ण बनाता
है
बिलकुल अपनी ही तरह
!
साधना वैद
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