कहाँ माँगे थे चाँद और सितारे कभी
तुम यूँ ही हमसे नज़रें चुराते रहे !
न रही जब ज़ुबानी दुआ और सलाम
बेवजह ख्वाब में आते जाते रहे !
तुम हमारी वफाओं पे हँसते रहे
हम जफा पे तेरी मुस्कुराते रहे !
तेरी यादों ने गाफिल किया इस तरह
बेखुदी में भी तुझको बुलाते रहे !
हम तुम्हें याद कर कर के जीते रहे
तुम हमें आदतन बस भुलाते रहे !
जितने नश्तर चुभोये ज़ुबां ने तेरी
हम उन्हें कुल जहाँ से छिपाते रहे !
ग़म के सहरा में जलती हुई रूह को
आँसुओं की नमी से जिलाते रहे !
हम तो मरहम हैं लाये तुम्हारे लिये
तुम अंगारों पे हमको चलाते रहे !
वक्त की इन फिज़ाओं में नग़मे तेरे
शाख से टूट कर गुनगुनाते रहे !
साधना वैद
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