१९४० में बने अपने इस मकान की हीरक जयंति पर विशेष प्रस्तुति !
ईंट गारे चूने से
बना यह भवन
केवल एक मकान नहीं है
यह तो युग-युग से
साधक रहा है
हर रोज़ परवान चढ़तीं
हमारी बेलगाम
ख्वाहिशों का,
हमारे बेहिसाब सपनों
का,
हमारे अनगिनत अरमानों
का
हमारी हज़ारों हसरतों
का
हमारी मधुरतम कोमल कल्पनाओं
का !
इस घर की चारदीवारी में मनाये
हर उत्सव, हर त्यौहार में
हर होली, हर दीवाली में
घुले हैं हमारे जीवन के रंग,
इसके आँगन की
हर सुबह, हर शाम
हर धूप, हर बारिश की
स्मृतियाँ आज भी हैं हमारे संग !
वो होली के अवसर पर आँगन में
बहते उड़ते रंग और गुलाल
वो आँगन की धूप में बैठ
घर की स्त्रियों का सीना पिरोना
और वो बच्चों के धमाल,
वो आँगन भर चटाइयों पर सूखते
बड़ी, मंगौड़ी, पापड़, अचार
वो तारों पर लटकते
गीले सूखे कपड़ों के अम्बार,
वो गर्मियों में आँगन में
ठंडे पानी का छिड़काव
और खाटों का बिछाना
वो दीवाली पर आँगन के हर हिस्से में
आकर्षक रंगोली का सजाना
वो मिट्ठू का पिंजड़ा और
सिल्की सम्राट के खेल
वो बच्चों की साइकिलें
और खिलौनों की रेल
वो पापाजी की चाय
और मम्मीजी की तरकारी
वो गरम पानी का चूल्हा और
इंतज़ार में तकते रहना अपनी बारी !
कितने अनमोल पल हैं
जिनकी यादें अंकित हैं
आज भी इस अंतर में
भूलेंगे नहीं जीवन भर
जो कुछ पाया है हमने इस घर में !
यह सिर्फ एक घर नहीं
है
यह साक्षी है अनगिनत
परिवर्तनों का,
प्रत्यावर्तनों का
जिसका हम सबको है
आभास,
इसकी हर ईंट पर खुदी
हैं
ना जाने कितनी
कहानियाँ
और इसकी नींव में
दबे हैं
ना जाने कितने
इतिहास !
यहाँ पीढ़ियों ने
जन्म लिया है
यहाँ सपनों को पंख मिले हैं
यहाँ ना जाने कितने
नन्हे नन्हे परिंदों ने
अपने सलोने से नीड़ में
आँखें खोली हैं और फिर
अपने सुकुमार पंखों में
असीम ऊर्जा भर नाप डाला है
समूचे व्योम को अपनी उड़ान से !
यह वह तपोवन है जहाँ तब भी
‘लक्ष्मी’ का निवास था और
आज भी ‘लक्ष्मी’ का निवास है
और आने वाले सालों में भी
यह ‘लक्ष्मी’ का ही निवास रहेगा
इसीलिये तो इस घर का नाम
‘लक्ष्मी निवास’ है !
अटूट रिश्तों के
अटूट रिश्तों के
अनमोल धागों से गुँथा यह घर
प्रतीक है हमारी आस्था का
द्योतक है हमारी साधना का
आधार है हमारे विश्वास का !
यह घर हमारे मन में बसा है
और हम इस घर में बसे हैं
हमें गर्व है कि संसार का
सबसे खूबसूरत यह ‘घर’
हमारा आवास है !
हमें गर्व है कि संसार का
सबसे खूबसूरत यह ‘घर’
हमारा आवास है !
साधना वैद
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