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Sunday, January 3, 2016

कौन बताए ?



लाख तुमने पहन रखा हो
खामोशियों का जिरह बख्तर
मेरी आहें इतनी भी बेअसर नहीं
कि तुम्हारे इस कवच को
पिघला न सकें ! 

जिस दिन यह पिघल जाएगा
कैसे सामना करोगे
मेरे सवालों का ?
क्या उत्तर दोगे अपनी इस
अनायास ओढ़ी हुई बेरुखी का ?
क्या बहाना बनाओगे
एक बार फिर बरबस अपना
हाथ छुड़ा कर दूर चले जाने का ?
या कैसे आँखें मिला पाओगे उससे
जिसकी आस्था, जिसकी भक्ति
जिसके विश्वास, जिसकी अंध श्रद्धा को
तुमने बार-बार छला है ? 

क्यों छला है  
शायद इसका जवाब 
तुम्हें खुद नहीं पता !
किसीको उत्तर दो न दो
लेकिन क्या तुम कभी
खुद को भी इस सवाल का जवाब
दे पाए हो ?
यह तुम्हारी फितरत है या मजबूरी
कौन बताए ?

साधना वैद

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