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Sunday, January 31, 2016

कुछ अंतर्मन की और कुछ बाह्य जगत की

                                   'सम्वेदना की नम धरा पर '
                               डॉ. मोनिका शर्मा जी की नज़र से
कुछ अंतर्मन की और कुछ बाह्यजगत की । कवितायेँ ऐसी जो सब समेटकर सामने रख दें । साधना जी का कविता संग्रह 'संवेदना की नम धरा पर' ऐसी ही 151 रचनाएँ लिए है। जिन्हें पढ़ते हुए संवेदनशीलता लिए भाव मन में उतरते हैं । इस संकलन में 'आशा' और 'अनुनय' जैसी कवितायें मर्मस्पर्शी हैं । तो 'भारत माँ का आर्तनाद' और आत्म साक्षात्कार चेतना को उद्वेलित करने वाले भाव लिए हैं । किस भी स्त्री के लिए घर परिवार की जिम्मेदारियां निभाते हुए कर्म से जुड़े रहना कितना कठिन है यह भाव अन्य कई रचनाओं में भी है और साधना जी की लिखी मेरी कलम से टिपप्णी में भी । जो कि हमारे परिवेश का एक कटु सच है । ' तुम्हारी याद में माँ' एक बहुत ही हृदयस्पर्शी कविता है ।
यह सावन भी बीत गया माँ
ना आम ना अमलतास,
ना गुलमोहर ना नीम,
ना बरगद ना पीपल,
किसी पेड़ की डालियों पे
झूले नहीं पड़े !
इस रचना में माँ के जाने के बाद बेटियां जिस अधूरेपन को जीती हैं...... उम्र भर जीती हैं, उसका मर्मस्पर्शी चित्रण है । ममता के साए के बिना सारे तीज-त्योहार कितने सतही और नकली हो जाते हैं । यह हर स्त्री का मन समझ सकता है । संग्रह की पहली कविता 'तुम क्या जानो' स्त्री के अदम्य साहस और सृजनशीलता को दर्शाती है । स्त्री जो अनगिनत बंधनों और रुढ़ियों के बावजूद अपनी जिजीविषा को बनाये रखती है और कुछ नया रचती है । संग्रह में कितनी ही कवितायेँ हैं जो स्त्रीमन के भावों को यूँ ही मुखरता से सामने रखती हैं ।
तुम क्या जानो
रसोई से बैठक तक ,
घर से स्कूल तक ,
रामायण से अखबार तक
मैंने कितनी आलोचनाओं का ज़हर पिया है
तुम क्या जानो !
करछुल से कलम तक ,
बुहारी से ब्रश तक ,
दहलीज से दफ्तर तक
मैंने कितने तपते रेगिस्तानों को पार किया है
तुम क्या जानो !

'मौन की दीवारें' भी एक बेहतरीन रचना है । 'हौसला' मन जीवन को नई ऊर्जा देने वाली कविता है । ऐसी रचनाएँ वाकई संवेदनाओं को रेखांकित करती हैं । मानवीय मन की तह लेती हैं । 'संशय' 'मोक्ष' और 'रहस्य' भी संग्रह की उम्दा रचनाएँ लगीं । जिन्हें पढ़ते हुए मन को नई सोच का आधार मिलता है ।
मौन की दीवारों से
टकरा कर लौटती
अपनी ही आवाज़ों की
बेचैन प्रतिध्वनियों को
मैं खुद ही सुनती हूँ
और अपनी राहों में बिछे
अनगिनत काँटों को
अपनी पलकों से चुनती हूँ ........

'संवेदना की नम धरा पर' काव्य संग्रह के लिए साधना Sadhana Vaid जी को हार्दिक बधाई और सतत सृजनशील रहने की शुभकामनायें ।
हार्दिक आभार आपका मोनिका जी !
साधना वैद

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