कल श्रीमान जी के साथ फिर बहस छिड़ गयी ! मुद्दा था ‘राहुल’ शब्द का अर्थ क्या होता है ! मेरा कहना था कि राहुल का अर्थ होता है सारे दुःख दर्द और मुसीबतों को जीत लेने वाला ! श्रीमान जी का कहना था राहुल का अर्थ होता है बाधा या बेड़ी ! मैं इसे बिलकुल भी मानने को तैयार नहीं थी ! राहुल गौतम बुद्ध के बेटे का नाम था और अपने पुत्र का नाम कोई बाधा या अड़चन कैसे रख सकता है ! श्रीमान जी के मस्तिष्क में छात्र जीवन में यशोधरा पर पढ़ी हुई पुस्तक की स्मृति कौंध रही थी और मेरे पास बुक शेल्फ में रखे हुए छोटे बड़े मोटे पतले कई शब्द कोश थे ! लंबी बहस चली ! सारे शब्द कोश खंगाल डाले गये लेकिन मेरी शंका का समाधान किसी भी तरह नहीं हुआ ! अंतत: इंटरनेट पर गूगल की शरण ली गयी ! इंटरनेट पर हम दोनों के ही बताए हुए अर्थ शब्द कोश बता रहा था, Conqueror of all miseries, hindrance, fetter ! बात कुछ गले के नीचे नहीं उतर रही थी ! दोनों ही विरोधाभासी अर्थ एक शब्द के कैसे हो सकते हैं !
मुझे पराजित करने का मौका श्रीमान जी कैसे गँवा सकते थे लिहाज़ा वे गहन
छानबीन में लगे रहे ! गूगल सर्च के परिणामस्वरुप अनेक बौद्ध ग्रंथों में
'राहुल' शब्द से जुड़ी कहानियों के रोचक विवरण मिले जिन्होंने इस बात पर
विस्तार से प्रकाश डाला !
सिद्धार्थ के मन में वैराग्य की भावना प्रबल हो चुकी थी ! वे सांसारिक सुखों का त्याग कर ज्ञान की खोज में घर छोड़ कर जाना चाहते थे ! जिस दिन वे घर से जाना चाहते थे उसी दिन उन्हें सन्देश मिला कि रानी यशोधरा ने पुत्र को जन्म दिया है ! यह सुनते ही सिद्धार्थ चिंता में पड़ गये और उनके मुख से अनायास शब्द निकला ‘राहुला’ अर्थात बाधा, बंधन या बेड़ी ! उन दिनों आम बोलचाल के लिये पाली भाषा का प्रयोग किया जाता था ! इस भाषा में कदाचित ‘राहुला’ शब्द का अर्थ यही होता है ! विभिन्न भाषाओं के जानकार विद्वान एवं शोधार्थी निश्चित रूप से इस बात की पुष्टि कर सकेंगे ! एक ग्रन्थ में इस बात का भी ज़िक्र है कि जब सिद्धार्थ का जन्म हुआ था तो उनके पिता शुद्धोधन के मुख से हर्षातिरेक में शब्द निकला था ‘सिद्धार्थ’ अर्थात उनकी हर मनोकामना पूर्ण हुई ! और बच्चे का नाम सिद्धार्थ रख दिया गया ! ‘राहुल’ के जन्म के साथ सिद्धार्थ को ऐसा लगा कि सत्य की खोज में जाने के लिये उनके मार्ग में बाधा उत्पन्न हो गयी और कहीं उन्हें भौतिकता की बेड़ियों से बाँध ना दिया जाए और हठात् उनके मुख से शब्द निकला ‘राहुला’ ! वे बच्चे को देखे बिना ही घर छोड़ कर चले गये ! बच्चे के बाबा शुद्धोधन ने अपने पोते का नाम ‘राहुला’ रख दिया ! उस राजघराने की शायद यही परम्परा रही होगी कि संतान के जन्म के बाद पिता के मुख से जो शब्द निकले बच्चे का नाम वही रख दिया जाए ! ज्ञान प्राप्त करने के बाद सिद्धार्थ जब अपने शहर में सात वर्ष बाद पुन: लौट कर आये तो यशोधरा ने राहुल को अपने सन्यासी पिता गौतम बुद्ध से पहली बार मिलवाया और पिता पुत्र ने एक दूसरे को पहली बार देखा !
अब गौर करने की बात यह है कि सिद्धार्थ ज्ञान प्राप्त कर गौतम बुद्ध तभी बन पाये जब वे ‘राहुल’ का मोह त्याग कर सत्य की खोज में अपने अभियान पर निकल गये ! और तब ही वे विस्तृत परिप्रेक्ष्य में मानवता का भला भी कर पाए ! यह बात आज के सन्दर्भ में भी कहीं लागू तो नहीं हो रही है ? क्या ‘राहुल’ बनाम ‘राहुला’ सच में बाधा, अड़चन, अडंगे या बेड़ी का ही पर्याय बन गया है ! आपकी क्या राय है ? मुझे आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी !
साधना वैद
सिद्धार्थ के मन में वैराग्य की भावना प्रबल हो चुकी थी ! वे सांसारिक सुखों का त्याग कर ज्ञान की खोज में घर छोड़ कर जाना चाहते थे ! जिस दिन वे घर से जाना चाहते थे उसी दिन उन्हें सन्देश मिला कि रानी यशोधरा ने पुत्र को जन्म दिया है ! यह सुनते ही सिद्धार्थ चिंता में पड़ गये और उनके मुख से अनायास शब्द निकला ‘राहुला’ अर्थात बाधा, बंधन या बेड़ी ! उन दिनों आम बोलचाल के लिये पाली भाषा का प्रयोग किया जाता था ! इस भाषा में कदाचित ‘राहुला’ शब्द का अर्थ यही होता है ! विभिन्न भाषाओं के जानकार विद्वान एवं शोधार्थी निश्चित रूप से इस बात की पुष्टि कर सकेंगे ! एक ग्रन्थ में इस बात का भी ज़िक्र है कि जब सिद्धार्थ का जन्म हुआ था तो उनके पिता शुद्धोधन के मुख से हर्षातिरेक में शब्द निकला था ‘सिद्धार्थ’ अर्थात उनकी हर मनोकामना पूर्ण हुई ! और बच्चे का नाम सिद्धार्थ रख दिया गया ! ‘राहुल’ के जन्म के साथ सिद्धार्थ को ऐसा लगा कि सत्य की खोज में जाने के लिये उनके मार्ग में बाधा उत्पन्न हो गयी और कहीं उन्हें भौतिकता की बेड़ियों से बाँध ना दिया जाए और हठात् उनके मुख से शब्द निकला ‘राहुला’ ! वे बच्चे को देखे बिना ही घर छोड़ कर चले गये ! बच्चे के बाबा शुद्धोधन ने अपने पोते का नाम ‘राहुला’ रख दिया ! उस राजघराने की शायद यही परम्परा रही होगी कि संतान के जन्म के बाद पिता के मुख से जो शब्द निकले बच्चे का नाम वही रख दिया जाए ! ज्ञान प्राप्त करने के बाद सिद्धार्थ जब अपने शहर में सात वर्ष बाद पुन: लौट कर आये तो यशोधरा ने राहुल को अपने सन्यासी पिता गौतम बुद्ध से पहली बार मिलवाया और पिता पुत्र ने एक दूसरे को पहली बार देखा !
अब गौर करने की बात यह है कि सिद्धार्थ ज्ञान प्राप्त कर गौतम बुद्ध तभी बन पाये जब वे ‘राहुल’ का मोह त्याग कर सत्य की खोज में अपने अभियान पर निकल गये ! और तब ही वे विस्तृत परिप्रेक्ष्य में मानवता का भला भी कर पाए ! यह बात आज के सन्दर्भ में भी कहीं लागू तो नहीं हो रही है ? क्या ‘राहुल’ बनाम ‘राहुला’ सच में बाधा, अड़चन, अडंगे या बेड़ी का ही पर्याय बन गया है ! आपकी क्या राय है ? मुझे आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी !
साधना वैद
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