(१)
सात अश्व के यान पर, शोभित ललित ललाम
भुवन भास्कर आ रहे, थामे हुए लगाम !
(२)
दूर क्षितिज की कोर पर, उभरे रवि महाराज
तिमिर बंध कटने लगे, प्रकृति बजाये साज़ !
(३)
कमल पुष्प खिलने लगे, भ्रमर सुनायें गीत
उष्ण सुनहरी रश्मियाँ, दूर भगायें शीत !
(४)
पुलक पड़े पर्वत शिखर, पा सूरज का साथ
जगा रहीं रवि रश्मियाँ, फेर माथ पर हाथ !
(५)
पंछी दल उड़ने लगे, वसुधा हुई विभोर
जग का अँधियारा मिटा, हुई सुहानी भोर !
(६)
मंदिर के पट खुल गये, गूँज रहा प्रभु गान
अगर धूप की गंध से, सुरभित हैं मन प्राण !
साधना वैद
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